...........ख़ामोशी............
ये ख़ामोशी देखो जान लेती है
यादों से तेरी बेचैनी छाती है,
रूह मेरी घुँ- घुँ सी जलती है
सर्द हवाएँ जब तन को छूती है,
कहराती तन्हाई तब नोचती है
सासों में क़तरा क़तरा पलती है,
धड़कनों पर जब काई जमती है
मद्दम आवाज़ तेरा नाम लेती है,
अपनापन मिले किसी मोड़ पर
चाहत में मन इतर बितर होता है,
फिर ढूँढती है खोई नज़रें तुम्हें
तेरी झलक पाने दिल मचलता है
तोड़ दूँ बंदिशें छोड़ दूँ दहलीज़
समा जाऊँ तेरी बाँहों में मेरे अज़ीज़
तड़प मेरे दिल की तू नहीं समझता
ओ बेदर्दी तू क्यों नहीं मुझे मिलता
सुनो..साँसे मेरी अब मर रही है
तुझसे इल्तज़ा ये सुवी कर रही है
आख़री बार तू मेरा सलाम ले ले
तू ही है मेरा ये अंतिम पैग़ाम ले ले
........सुवर्णा परतानी........
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