साहित्य चक्र

05 May 2019

मैं सबको सुनाता हूँ

✍ दिल से देता हूँ वोट ✍
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मैं सबको सुनाता हूँ लेकिन , मैं हूँ बहरा ,
किसी की नहीं सुनता मैं ये , आज कह रहा ।
मैं दिल से देता हूँ वोट , पैसों से नहीं , 
मेरा वोट है मेरा हक , शान से कह रहा ।।

ये चुनावी हथकंडे है , ये तो रोज आएंगे ,
ये हाथो को जोड़ कर , हमारे पाँव दबाएंगे ।
इन लोगो की बातो में , तुम कभी ना आना ,
ये हाथ जोड़ने वाले फिर , हमको दबाएंगे  ।।

राजनीति के ये चोंचले है , सम्भल जाओ तुम ,
मीठे-मीठे है बोल इनके , सम्भल जाओ तुम ।
ये आज बोल रहे , कल चुप्पी साधेंगे ,
ये राजनीतिक जुमला है , सम्भल जाओ तुम ।।

काका , दादा और भैया  , तुम्हे कह के बुलाये ,
चन्द पैसो का लालच देके , तुम्हे पास बुलाये ।
पल भर में बदल देते है  ये , अपना यह रुप ,
एक साइन करने के लिए , रोज दफ्तर बुलाये ।।

इनका कोई सगा नही, कोई दोस्त नही है ,
बस पैसे के भूखे है , सिर्फ  होश यही है ।
इनको नही मतलब तुमसे , जीत जाए तो ,
ये चुनावी गिरगिट है,  इनका दोष नहीं है ।।

वोट पर है अधिकार , देना तोल-मोल के ,
गलती से भी ना देना ,कभी बोतल खोल के ।
एक वोट तुम्हारा बनाता है, अच्छी सरकार ,
फिर पांच साल तक , जीना दिल खोल के ।।

सफेद कुर्ते वाले रोज , मिल ही जाते है ,
राजनीति के दाव पेंच  , लड़ ही जाते है ।
इन सबका नुकसान , आम आदमी भरे ,
ये राजनेता रोज नए , पकवान खाते है ।।

" जसवंत " कहे ,  राजनीति बुरी नही है ,
इन नेता  की ईमानदारी , पूरी नही है ।
स्वच्छ राजनीति अपना ले तो, बात ओर बने ,
सोने की चिड़िया बने भारत , दूरी नहीं है ।।

                                              जसवंत लाल खटीक


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