श्रमवीर तुम महान हो
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चिलचिलाती धूप में भी कर्म करते।
श्रमवीर तुम सचमुच महान कहाते।।
धरती के रक्षक बन इसे संवारते।
इसे सजाने में अहर्निश स्वेद बहाते।।
वनों की रक्षा करते दुख सारे सहते।
अभावों में रहकर तुम दृढ़ बन जाते।।
कड़कड़ाती ठण्ड की परवाह न कर।
तुम पत्थर ईंटे उठा कर दौड़ लगाते।।
बच्चे पेड़ के तने से बंधे झूले पर सोते।
तुम पाइप लाइन बिछाने में लग जाते।।
बुखार सर्दी जुखाम में भी गेंती चलती।
फावड़ों की खनखन में तुम खो जाते।।
तगारी भर भर मिट्टी को बाहर फेंकते।
तन झुलसता भीषण गर्मी से तुम्हारे।।
।।राजेश कुमार शर्मा।।
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