वर्षों पुरानी कहानी का घर।
मस्ती में डूबी रवानी का घर
जिस राह से आये बचपन की खुशबू
उसी राह में मेरी नानी का घर।
गर्मी की छुट्टियों में बसर था हमारा
खुशीयों की छांव में शज़र था हमारा
हंसी से सजी जिंदगानी का घर
कुछ एेसा था सुन्दर मेरी नानी का घर
दिन भर चले फिर भी थकते नहीं थे
बात दिन भर वही फिर भी पकते नहीं थे
जहां जाने हमको सब मां की बदौलत
उसी गांव में मेरी नानी का घर
शेर होते थे हम अपने मामा के चलते
कोई कितना डराये हम फिर भी न डरते
वो मां की इकलौती निशानी का घर
था सबसे अलग मेरी नानी का घर।
हंसने और रोने की वजह एक ही थी
चुप होने की भी जगह एक ही थी
वो अल्हड़ से बचपन की तुफानी का घर
मैं नहीं भूलूंगी मेरी नानी का घर।
वो नानी के आंचल की सिलवट पुरानी
जहाँ ढूंढते थे चुनर आसमानी
थी जब बीत जाती मेरी छुट्टीयां
वो नानी के आंखों में पानी घर
मैं नहीं भूलूंगी मेरी नानी का घर।
कंचन तिवारी "कशिश"
No comments:
Post a Comment