‘ एक डोर जिंदगी हैं’
“एक डोर जिंदगी हैं
कभी उलझी हुई तो
कभी सुलझी हुई है
कभी फैली पड़ी वीरान सी
जिंदगी एक डोर हैं ।
कभी जिंदगी–जिंदगी को ढूंढे
कभी जिंदगी –जिंदगी से मुंह मोड़े
कभी कई खुशियों को चूमे
तो कहीं सूनी रहे जिंदगी
जीवन झमेला लगे
बेवकूफी भरी ।
दुनिया मेला लगे
दुखों से भरी
कभी सीधी लगे
कभी टेढ़ी लगे
कभी किस्मत से लड़े
कभी किस्मत से चले
कभी अलौकिक बने
कभी रहस्य बने
किन्तु! खूब जानती हैं
जिंदगी भी किनारा
उसका भी दो किनारा
टूटे तो दो किनारा
न टूटे तो दो किनारा
इसलिए !
जिंदगी एक डोर हैं ।"
लेखिका –रेशमा त्रिपाठी
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