साहित्य चक्र

05 May 2019

मन मेरा इक मौसम

मौसम


 मन मेरा इक मौसम सा है,
रँग बदलते हर मौसम सा है,

चँचल पवन है सरसराती,
अठखेलियां खेल ये छेड़ जाती,

प्रीत की ऊष्मा ह्रदय पिघलाती,
सुर्ख कोपल सी कभी शरमाती,

मेघों का यूँ  घूँघट ओढ़े,
खुलते हों ज्यों नभ के झरोखे,

शीत लहर जब छूकर जाती,
सन्नाटों में ये शोर मचाती,

मदमाती करवट नदिया की,
याद ले आयी आज पिया की,

रूप ,अदा का रस बरसाती,
तन ,मन मेरा भिगोकर जाती,

मन मेरा इक मौसम सा है,
रँग बदलते हर मौसम सा है!

                                             सीमा कपूर चोपड़ा


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