लगातार प्रतियोगी परीक्षाओं में मिलती असफलता से प्रशांत का उत्साह कुछ कम हो गया था।किन्तु वह निराश नहीं हुआ था।उसे अपनी लगन,निष्ठा,ईमानदारी एवं परिश्रम पर पूरा विश्वास था।
जितनी बार वह प्रतियोगी परीक्षा में असफल होता उतनी ही लगन ,मेहनत और निष्ठा से वह अगली बार की तैयारी में जुट जाता।यह उसका दुर्भाग्य था या शासन के नियमों की वाध्यता कि वह एक अंक या एक अंक से भी कम प्वाइंट्स से मैरिड में रह जाता था।
इतनी बार असफल होने पर भी उसने हार नहीं मानी।क्योंकि वह जानता था कि अँधेरे के बाद उजाला आता है।रात जितनी ही काली होती है सुबह उतनी ही प्रकाशवान हो जाती है।
प्रशांत ने मन में ठान लिया था कि वह एक न एक दिन सफल होकर ही रहेगा। उसे उम्मीद थी कि एक दिन उसकी प्रतिभा का मूल्यांकन अवश्य होगा।
काले- काले घने बादलों की कालिमा धीरे-धीरे छँट रही थी।बादलों में छिपी सूर्य की किरणें धीरे-धीरे विकीर्ण होने लगी थीं।सूर्य देव बादलों के बीच से झांक रहे थे।मानों मुस्करा कर कह रहे थे, "बादल मुझे ढँक तो सकता है किन्तु मेरे अस्तित्व को मिटा नहीं सकता है।"
आज प्रशांत की उम्मीद का सूर्य भी धीरे-धीरे अपनी लालिमा विखेरता हुआ अपने आने की सूचना दे रहा था।आज ही तो प्रशांत की जिला न्यायाधीश के पद पर ज्वाइनिंग हो रही थी।
श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल'
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