अब प्रेम को मदारी का सामान मत करो,
इंसानों में ये हिन्दू मुसलमान मत करो
इंसाँ हो तुम भी, थोड़ा तो इंसानियत रखो,
हँसते हुए घरों को यूँ वीरान मत करो
बातों से भी तो मसअला हल हो ही सकता है,
हर बात में ये जंग का ऐलान मत करो
दुनिया है कुछ न कुछ तुम्हें कहती रहेगी ये,
दुनिया को छोड़ो ख़ुद को परेशान मत करो
सब कुछ ले जाओ, साथ की तस्वीर रहने दो,
तुम मुझको ख़ुद से इतना भी अंजान मत करो
मुझसे ये बज़्म में वो, ये क्यों बोलते हो तुम,
पर्दा हटाओ चहरे से, हैरान मत करो
अब तो महज़ ये ख़्वाब ही हैं जीने की वजह,
मुझको जगा के नींद से, बेजान मत करो
टीक सिंह काशिफ़
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