साहित्य चक्र

13 June 2020

अभी नही देखा



सिर को झुकते देखा है, 
पर झुकाते नहीं देखा 
अभी अपनापन देखा है, 
परायापन नहीं देखा 
अभी प्यार देखा है, 
नफरत नहीं देखी 
अभी दोस्ती देखी है,
 दुश्मनी नहीं देखी 

अभी इज्जत देते हुए देखा है, 
बेइज्जती नहीं देखी 
सब कुछ पाते हुए देखा है, 
सब कुछ खोते हुए नहीं देखा 
सबको साथ देते देखा है, 
अकेलापन नहीं देखा 
मेरी खामोशी देखी है, 
मुझे ज्वालामुखी बनते नहीं देखा

 पानी जैसे शांत चलते देखा है,
 उसी पानी को सब कुछ
 बहाते ही नहीं देखा 
अभी सिर्फ तूफान देखा है, 
तूफान को बवंडर बनते नहीं देखा 
सच्चाई पर पर्दे पड़े देखे हैं,  
उन परदो को उठते नहीं देखा 

                                अमित डोगरा


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