साहित्य चक्र

01 June 2020

ईदगाह



सभी के साथ खुश था आज हामिद
तीस  रोजे  के  बाद  आई  थी  जो  ईद ।
ईदगाह  जाने  को  सभी  थे   तैयार
हामिद  भी  जाने की  कर रहा  था जिद ।।

उसके न अम्मी थी और न थे अब्बा 
दादी  के  पास  रहता था यह नन्हा ।
ईदगाह   मेले   में   जाने   के   लिए
हामिद कर रहा था बेसब्री से प्रतिक्षा ।।

दादी के पास न रुपयें थे , न थे पैसे 
छ:  आने  इक्कठें  किए  जैसे - तैसे ।
तीन आने  देकर  हामिद को दी ईदी 
ईदगाह दौड़ा चला वह जल्दी -जल्दी ।।

हामिद खुशी - खुशी ईदगाह पहुंचा
जहां न कोई  छोटा था , न कोई ऊंचा ।
ईद  का  मेला  सबको  लुभा  रहा  था 
मिठाई तो कोई गुलाब जामुन खा रहा था ।।

किसी  ने  घोडे - हाथी , राजा - रानी
तो किसी ने भिश्ती,तो किसी गेंद खरीदें ।
किसी  ने  घूमी  चरखी ,  झूला  झूले 
तो किसी ने खरीदें ढ़ेर सारे खिलौने ।।

हामिद ने सोचा यह बेकार के खिलौने 
मिट्टी के कच्चें , लाचार  ये खिलौने ।
यह  टूट   जाएंगें   घर  पर  जाते   ही
मिठाई खत्म हो जाएंगी अंदर जाते ही ।।

दादी  के  जलते  हाथों को रोज देखा
हामिद ने खरीदा झट से एक चिमटा ।
बहुत  खुश  होगी   मेरी  प्यारी  दादी 
मेरे हाथों  में  देखकर सुंदर  चिमटा  ।।

चिमटा देखकर दोस्तों ने उड़ाया उपहास
हामिद ने दिए दोस्तों को दो टूक जवाब ।
दोस्तों के ताने-बाने न की उसने परवाह 
चिमटा लेकर चला यह नन्हा जनाब ।।

हाथों  में  देखकर  लोहे  का चिमटा
दादी  हुई  हामिद  पर  बहुत  गुस्सा ।
बोली   तुझको   कुछ   ना   सूझा 
दिनभर  का  तू  रहा  भूखा - प्यासा ।।

हामिद   ने   पूरी   बात   बतलाई
चिमटे   की  अहमियत  समझाई ।
सुनकर दादी  ने उसे गलें लगाया
आंखों   से अश्रुधारा   बह  आई ।।

ईदगाह त्याग, वात्सल्य, ममता की
प्रेरणादायीं,ह्रदयस्पर्शी   कहानी  हैं  ।
कवि गोपाल गा रहा जिसका गुणगान 
मुंशी प्रेमचंद की यह अमर कहानी हैं ।।

                                  ✍️गोपाल कौशल


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