सभी के साथ खुश था आज हामिद
तीस रोजे के बाद आई थी जो ईद ।
ईदगाह जाने को सभी थे तैयार
हामिद भी जाने की कर रहा था जिद ।।
उसके न अम्मी थी और न थे अब्बा
दादी के पास रहता था यह नन्हा ।
ईदगाह मेले में जाने के लिए
हामिद कर रहा था बेसब्री से प्रतिक्षा ।।
दादी के पास न रुपयें थे , न थे पैसे
छ: आने इक्कठें किए जैसे - तैसे ।
तीन आने देकर हामिद को दी ईदी
ईदगाह दौड़ा चला वह जल्दी -जल्दी ।।
हामिद खुशी - खुशी ईदगाह पहुंचा
जहां न कोई छोटा था , न कोई ऊंचा ।
ईद का मेला सबको लुभा रहा था
मिठाई तो कोई गुलाब जामुन खा रहा था ।।
किसी ने घोडे - हाथी , राजा - रानी
तो किसी ने भिश्ती,तो किसी गेंद खरीदें ।
किसी ने घूमी चरखी , झूला झूले
तो किसी ने खरीदें ढ़ेर सारे खिलौने ।।
हामिद ने सोचा यह बेकार के खिलौने
मिट्टी के कच्चें , लाचार ये खिलौने ।
यह टूट जाएंगें घर पर जाते ही
मिठाई खत्म हो जाएंगी अंदर जाते ही ।।
दादी के जलते हाथों को रोज देखा
हामिद ने खरीदा झट से एक चिमटा ।
बहुत खुश होगी मेरी प्यारी दादी
मेरे हाथों में देखकर सुंदर चिमटा ।।
चिमटा देखकर दोस्तों ने उड़ाया उपहास
हामिद ने दिए दोस्तों को दो टूक जवाब ।
दोस्तों के ताने-बाने न की उसने परवाह
चिमटा लेकर चला यह नन्हा जनाब ।।
हाथों में देखकर लोहे का चिमटा
दादी हुई हामिद पर बहुत गुस्सा ।
बोली तुझको कुछ ना सूझा
दिनभर का तू रहा भूखा - प्यासा ।।
हामिद ने पूरी बात बतलाई
चिमटे की अहमियत समझाई ।
सुनकर दादी ने उसे गलें लगाया
आंखों से अश्रुधारा बह आई ।।
ईदगाह त्याग, वात्सल्य, ममता की
प्रेरणादायीं,ह्रदयस्पर्शी कहानी हैं ।
कवि गोपाल गा रहा जिसका गुणगान
मुंशी प्रेमचंद की यह अमर कहानी हैं ।।
✍️गोपाल कौशल
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