साहित्य चक्र

28 June 2020

"बेटे भी घर छोड़ते है"



ये भाग- दौड़ के किस्से अजीब होते है,
सबके अपने उद्देश्य और औचित्य होते है।
कभी शिक्षा कभी जीवन की नव आशा मे,
सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी घर छोड़ते है।

जीवन मे सबके अजीब उधेड़बुन होती है,
समस्याओं की फ़ौज सामने खड़ी होती है।
गुजरना पड़ता है जब विपरीत परिस्थितियों से,
सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी प्रताड़ित होते है।

जब सफलता और रोजगार की बात होती है,
असफलता पर जब कुण्ठा व्याप्त होती है।
सारे प्रयास और प्रयत्न होते है जब निरर्थक,
सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी खूब रोते है।


घर से दूर रहकर सब तकलीफें सहते है,
कभी खाते है कभी भूखे भी सो जाते है।
जी भरकर देखते है तस्वीर माँ- बाप की,
सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी सम्मान करते है।


                              अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'


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