साहित्य चक्र

13 June 2020

मैं खुद को हारा हूं


तू सागर की चंचल लहर
और मैं शांत किनारा हूं

तू सहारों का है सहारा 
मै नितांत बेसहारा हूं

जब जब तू मुझसे टकराती
तब तब मैं खुद को हारा हूं

तू मेरे सीने के जख्म सी
और मैं मरहम तुम्हारा हूं

तू तो है मेरी सखी सहेली 
पर मैं ना तुझे गवारा हूं

तू मुझे छूकर हुई नमक सी
और मै तुझे छूकर खारा हूं

तुम हो बस अपनी ही धुन मे 
और मैं तेरे इश्क मारा हूं

तुम लाजवंती की क्यारी सी
और मैं निर्लज्ज अवारा हूं

                                  आयुष त्रिपाठी 



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