किससे पूछे कि कहाँ किनारा है
पराये जग कौन हमारा है,
राह पर बिखरे कांटे कौन बहोरेगा
जिसे देखो वो कांटे ही बिखेरेगा,
बस आँखे बंद करके
समाज के बंदिश में जाओ तुम,
क्या आँखो से रास आओगे ना
बिखरे रिश्ते को अपनाओ ना
कुछ उम्मीद की हरियाली बना डाला
जो आँखो ने सावन की बारिश बना डाला,
अभिषेक राज शर्मा
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