साहित्य चक्र

01 June 2020

तन हे धन..


    
जिहाँ मोल नइहे ये दुनिया म, त तोल कोन करय।
नइ करें  भाव बियाना, अऊ झोली कोनो नइ भरय।।


होवत हे बिहान फेर, हजाये मति सचेत नइ पावय।
पिसान के संगे म, किरा कस चिक्कन रमजावय।।


उपरछावा कठवा हे तन , हिरदे हे खुरहोरी,मीठ पानी।
कब गुनबे नोहर तन ल, करेजा होही जब चानी चानी।।


परकबारी बन गेहे तोर तन, मन बोलय जइसन माने।
अबुजहा गरब गुमान में, फोकट उपराहा सेखी ताने।।


धरम करम ल छोड़ के, उफनात भँवर में डुबकी लगाये।
मँदरस जस बानी छोड़ के, अरई में हुदरे सही गोठियाये।।


पाप भरे तन -मन म, दया-मया अऊ सेवा ल नई जाने।
बन जा मानुस चंदन रे, माथ अंगरी ल खुशबू म रे साने।।

         
                                     अजयशेखर 'नैऋत्य'


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