साहित्य चक्र

28 June 2020

#धरती_माँ_की_चुनर



पर्यावरण बनता है प्राकृतिक अवयवों से
हवा से,पानी से,मृदा से,वन बागों झरनों से

बसुंधरा की हरीतिमा पर्यावरण बनाती है
आज धनलोलुपता ने पर्यावरण बिगाड़ा है

विकास की अंधी दौड़ विकृत कर डाला है
आज हवा, पानी, मृदा सब विकृत रूप है

भूजल का स्रोत तेजी समाप्त होता जा रहा है
आज हवा में रसायनिक जहर घुलता जा है

मिट्टी अपनी उर्वराशक्ति खोती जा रही है
कल कारखानों के शोर ने बहरा किया है

मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर है! 
ऐसे हमारी धरती शस्यश्यामला कैसे होगी! 

#धरती_माता_की_चुनर के दाग कैसे मिटेंगे! 
जीवों का भविष्य कैसे टिका रह पायेगा! 

गिद्ध चील इस धरती को छोड़ चुके हैं!! 
गौरेया अब कहीं नजर नहीं आती है!!

धरती माता अब बांझ होती जा रही है!! 
पर्यावरण संरक्षण अब कैसे होगा!!


                                   डॉ कन्हैयालाल गुप्त #किशन


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