साहित्य चक्र

13 June 2020

शरीर धू-धू कर


खिला गए बम, अनानास बताकर, 
लगा धधकने मेरा आंतरिक शरीर धू-धू कर,
बिखर गई मेरी दुनिया उसी क्षणभर,
लिया सहारा पानी का जलधर,
बचा न पाई उस मासूम को पलभर,
सांसे टूटी मेरी तड़प-तड़प कर ।।


भूल गया है मनुष्य अपनी मनुष्यता न जाने क्यों उन्हें है एक खिलौना समझता भूल गया उनके अंदर भी दर्द है छिपा फर्क सिर्फ इतना है वो मुख से नही बोलता उनका दर्द भी आज तूने महसूस किया होता शायद है।

मनुष्य तू ऐसी हैवानियत न दिखता हैवानी रूपी मनुष्य तू अगर खुद से प्यार करता तो उस बेजुबान के दर्द को समझता और इस मनुष्य रूपी जीवन को शर्मसार न करता।

                                 नीतू प्रजापति


1 comment:

  1. बहुत सुंदर पंक्तियां 💐💐💐

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