साहित्य चक्र

01 June 2020

चांद से ही मुलाकात होगी


अपनी ही इस दुनिया में नीलाम होते होते
लो लुट गया मैं आज फिर शाम होते होते

सूरज की तपिश तो बस जलायेगी मुझको
चांद से ही मुलाकात होगी रात होते होते

तारों को भी रोशनी चांद से ही मिलती है
काश मैं भी तारा बन जाता शाम होते होते

मैं टूटने से पहले उसके पास चला जाता
तो शायद बच जाता ये अंजाम होते होते

                                             उल्लास पान्डेय


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