अपनी ही इस दुनिया में नीलाम होते होते
लो लुट गया मैं आज फिर शाम होते होते
सूरज की तपिश तो बस जलायेगी मुझको
चांद से ही मुलाकात होगी रात होते होते
तारों को भी रोशनी चांद से ही मिलती है
काश मैं भी तारा बन जाता शाम होते होते
मैं टूटने से पहले उसके पास चला जाता
तो शायद बच जाता ये अंजाम होते होते
उल्लास पान्डेय
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