साहित्य चक्र

01 June 2020

जीवन बीते बस हँसते गाते


मन कागज की नाव है साथी,
और ये तन माटी का ढेला है।

दो दिन हँसना दो दिन रोना,
जिंदगी चार दिनों का मेला है।

सुख दुख दोनों हैं आते जाते,
ये जीवन बीते बस हँसते गाते।

ये तन है कच्ची माटी का पुतला,
मन काला और तन है उजला।

मन की भक्ति है सच्ची साथी,
तन का मोह तो बस झमेला है।

मुट्ठी बांध के जग में आनेवाला,
एक दिन हाथ पसारे जायेगा।

कर्मों की गठरी बस साथ है जाती, 
यहाँ का कमाया यही रह जायेगा।

कुदरत ने रची है ये माया सारी,
ये सारा का सारा खेल प्रभू ने खेला है।


                                      आरती त्रिपाठी


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