साहित्य चक्र

28 June 2020

मुक्तक



तेरी हर मुलाकातें मुझे सदा याद आती है
चलती हुई घड़ी में तेरी ही आवाज आती है
लगती है मुझे वैसी तुझे भूल नहीं पाऊंगा
कुछ ही महीनों में तू मुझे क्यों भूल जाती है?


सनम से मिलने मैं हर रोज तो मन्दिर जाता हूं
इशारों वक़्त सब के नजरों में मैं गिर जाता हूं
तरुनाई का इश्क़ ही अंत जीवन का निशान है
इश्क़ का इल्ज़ाम लगा कर घर आखिर जाता हूं।


पहली  मोहब्बत  में  मशहूर  हो गया हूं मैं
मोहब्बत  में  परिवार  से  दूर  हो गया  हूं  मैं
इश्क़,मोहब्बत की किस्सा तो मुझ पता नहीं थी
अब पढ़ने-लिखने में भी मजबूर हो गया हूं मैं।


अरमान है, तुझे पाने तभी तो याद करता हूं
इश्क़ को समझा हूं, तभी तो वक़्त बर्बाद करता हूं
जो इश्क को समझता, वो दौलत को नहीं समझता
दूर हो कर भी मैं कभी नहीं फरियाद करता हूं।

                                          अनुरंजन कुमार "अंचल"


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