साहित्य चक्र

24 June 2020

ओ सखी



ओ सखी..!
मैं स्वयं से डरती हूं।
पल पल आगे बढ़ती हूं।
बिन बुलाए अपनों से लड़ती हूं 
और प्रतिदिन नृत्य करती हूं।

ओ सखी..!
मैं स्वयं से डरती हूं।
लाखों दर्द सह कर उभरती हूं।
फिर भी कई ताने रोज सहती हूं।
ओ सखी..! 
आज मैं तुमसे अपनी कहानी कहती हूं 
और नित्य प्रण करती हूं।

मैं स्वयं से डरती हूं।


                                      @दीपक_कोहली 'पागल'

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