भूरे की ख़ुशी का कोई ठिकाना ना था. वो तो रहता ही ऐसे मौके की तलाश में था कब कहीं दंगा फ़साद हो और कब उसके पौ बारह हों. आज शहर में हो रहे दंगों को देखकर वो बहुत ख़ुश था, चलो फिर कहीं हाथ आजमाने का मौका तो मिलेगा.. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी दूसरी तरफ की आवाज़ सुन भूरे के चेहरे की चमक बढ़ जाती है एकाएक बोल उठा " क्या साहब बस पाँच हजार? ठीक है साहब काम हो जाऐगा. अगले दिन पता चला मीना चौक पे भरी बस में आग लगा दी गयी .. कुछ लोग निकल कर जान बचाने में सफल हो गए कुछ आधी जली हालत में पाए गए और दो व्यक्ति जलकर खत्म हो गए. उस रात भूरे अपने घर नही पहुँचा इस डर से कहीं किसी ने मुझे पहचान तो नही लिया. अगली सुबह भूरे जब अपने घर पहुँचा तो घर के बाहर भीड़ लगी देखकर सकपका गया अंदर गया तो औरते दहाड़े मार-मार कर रो रहीं थीं और बीच में सफ़ेद कपड़े से ढका उसके बेटे का शव पड़ा था. चारों तरफ अंदर-बाहर सिर्फ एक ही चर्चा थी नाश हो मर गए इन दंगाइयों का जिन्होंने बस को आग लगाई, जब अपना कोई जलेगा तब पता चलेगा? भूरे को तो जैसे साँप सूंघ गया हो.. कुछ समझ ही नही आ रहा था.. पाँच हजार की ख़ुशी मनाए या बेटे की मृत्यु का शोक?
अंजलि गोयल 'अंजू '
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