वो लोग और उनका अपनापन
अब नहीं रहा
पहले गाँव, गाँव था
अब गाँव कम, मिनी शहर बन गया है।
इसीलिए तो -
वो पहले वाले लोग नहीं रहे
खाकर शहर की हवा
मर गया उनके अन्दर से अपनापन
वो उल्लास तीज त्यौहारों वाला
कब का दफन हो गया
अब तो बस डी. जे. वाला
शोर-शराबा ही बचा है।
फुहड़ता ही संस्कार का नया संसकरण हो गया है
बात-बात पर कोर्ट-कचहरी का रिवाज हो गया है
स्मार्टफ़ोन की तरह हर कोई स्मार्ट हो गया है
जिंदगी का शॉर्टकट हो गया है।
गाँव में भी अब आदमी बहुत-बहुत होशियार हो गया है
हर काम में पूछने लगा है -
इसमें मेरा क्या फायदा है?
निज बाप की अंतिम यात्रा में भी
बत्तीसी दिखाकर लकवा मारे जैसा मुँह बनाकर
सेल्फी खींच रहा है
अब आदमी बहुत स्मार्ट हो गया है।
- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
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