साहित्य चक्र

14 December 2019

कौन कहता है कि दिल किसी का धड़का नहीं

रूसवाईयों के डर से कभी मोहब्बत नहीं की
खूब दिल से चाहा बस कहने की जुर्रत नहीं की


कौन कहता है कि दिल  किसी का धड़का नहीं 
शोला इश्क का दिल में कब किसी के भड़का नहीं 

खुदा तो लाखों मिले हमें दिल में बसने के लिए 
बस हमने ही कभी किसी की इबादत नही की

आसान था बहुत किसी के दिल को अपनाना
मुश्किल लगा बस किसी के दिल में रह पाना

दिल की गलियों में किसी के रोज करते रहे बसेरा
सुबह ओ शाम लगाते रहे किसी के घर का फेरा

कौन कहता है इस दिल ने किसी की आरजू नहीं की
कौन सा पल बीता जब वफा की मैने जुस्तजू नहीं की

गुजरते हुए लम्हों में चाहते थे हम भी ठहर जाना
पर दिल ने मेरे जमाने से कभी बगावत नहीं की

तड़पता रहा दिल किसी की खैर ओ ख्वाहिश में
मगर कभी उम्मीदे वफा की दिल ने चाहत नहीं की

सफर जिंदगी का तन्हा तय कर पाना मुश्किल था
फिर भी किसी के साथ दिल लगाने की शरारत नहीं की

लोग यूँ ही पाबंदियों के तलबगार हुआ करते हैं
मैंने जिंदगी किसी के पाबंदियों के बाबत नहीं की

                                         आरती त्रिपाठी सीधी 


No comments:

Post a Comment