साहित्य चक्र

14 December 2019

मै भारत की आबो हवा देख रहा हूँ


अनजान शख्स


यू तो मै भारत की आबो हवा देख रहा हूँ

यू तो मै भारत की शमो सहर देख रहा हू

मै तो अखंड भारत को देख रहा हू

मै तो भारत में दलितों का आंदोलन देख रहा हू

मै तो कासगंज और मुजफ्नगर के दंगे भी देख रहा हू

मै तो दिल्ली को सत्ता के बीच पिस्ता देख रहा हू

मै तो कर्णाटक राजस्थान की राजनीती भी देख रहा हू

मै तो राजस्तान की गर्मी पुरे भारत के मन में देख रहा हू

यू तो मै भारत की आबो हवा देख रहा हूँ

यू तो मै भारत की शमो सहर देख रहा हू

मै तो गंगा का सफाई अभियान उन बेज़ुमान मछलियों के आँसू से देख रहा हू

मै तो स्वच्छ भारत के होते हुए भारत में गंदगी को देख रहा हू

मै तो भारत के फोजियो की वीरता भी देख रहा हू

मै तो जेनयू  के छात्रों की आवाज़े भी सुन रहा हू

मै तो कश्मीरी पथरबाज़ो की कायरता भी देख रहा हू

यू तो मै भारत की आबो हवा देख रहा हूँ

यू तो मै भारत की शमो सहर देख रहा हू

यू तो मै कठुला की दरिंदगी भी देख रहा हू

यू तो मै उन्नाओ की  दरिंदगी भी देख रहा हू

मै तो कानून को बड़े नेताओ की कटपुतली का रंगमंच बनते हुए देख हू

यू तो मै सिद्धू की सत्ता की ताक़त भी देख रहा हू

यू तो मै सलमान के पैसे को भी देख रहा हू

यू तो मै अखंड भारत  को देख रहा हू

यू तो मै भारत की आबो हवा देख रहा हूँ

यू तो मै भारत की शमो सहर देख रहा हू

मै तो अखंड भारत को   देखने निकलता हू

मेरा भारत का यात्रा वृतांत कुछ इस प्रकार इस प्रकार है

मेरी यात्रा भी उस टूटी हुई कश्ती की तरह है जो गहरे पानी में दुब जाती है

यू तो मेरी कश्ती भी उसी दरिया में घूमने निकलती है

जिसकी शमो सहर आबो हवा ही निराली है

मेरी कश्ती तो गंगोत्री से निकलती है

वो तो कश्मीर की वादियों संग बहती है

वो तो वाघा बॉर्डर और जलियावाला बाघ से घूमते हुए निकलती है

वो तो पंजाब हरयाणा के किसानो के धक्को से चलती है

उसमे तेल तो दिल्ली की जनता भर्ती है

उस कश्ती की रफ़्तार तो अमर जवान ज्योति को देख कर बढ़ती  है

वो तो कठुला और और उन्नाओ को देखकर हर रोज़ आग में झुलसती  है

वो तो किसानो की मौत का तमाशा देखने मेरे संग खेतो में रूकती है

हम भी वही थम जाते है जहा दो नेता हमारी स्वागत  का ढ़ोग रचाते है

यु चुनाव आते ही हमारी कश्ती की झुलसती हुई आग भी बुझ  जाती है

यु तो मेरे मन के चोट पर जुमलेबाज़ी से मलहम लगाने की कोशिश की जाती है

यु तो चुनाव जाते ही मेरी हालत भी उसी मतदाता की तरह है

जो किताबो के पैनने में खो जाते है

यू तो मेरी कश्ती भी उसी दरिया में घूमने निकलती है

जिसकी शमो सहर आबो हवा ही निराली है

यूं तो  इन आखो में भी सपने है पर वो आँखे नहीं है जो सपने देख सके

यूं तो मै बोलना चाहता  हूँ  पर मै तो बेज़ुबान हूं

यु तो मेरे पास भी एक दिल है

वो दिल जो औरो के विचारो से धरक्ता है

मेरे विचार तो किसी पुस्तकालय में बंद है

यूं तो मै आज भगवा रंग में रंग में रंगा हूं

यु आज मै नील रंग में रंगा हूं

यू तो मै भारत की आबो हवा देख रहा हूँ

यू तो मै भारत की शमो सहर देख रहा हूँ



                                            एडवोकेट ध्रूव सक्सेना


No comments:

Post a Comment