अनजान शख्स
यू तो मै भारत की आबो हवा देख रहा हूँ
यू तो मै भारत की शमो सहर देख रहा हू
मै तो अखंड भारत को देख रहा हू
मै तो भारत में दलितों का आंदोलन देख रहा हू
मै तो कासगंज और मुजफ्नगर के दंगे भी देख रहा हू
मै तो दिल्ली को सत्ता के बीच पिस्ता देख रहा हू
मै तो कर्णाटक राजस्थान की राजनीती भी देख रहा हू
मै तो राजस्तान की गर्मी पुरे भारत के मन में देख रहा हू
यू तो मै भारत की आबो हवा देख रहा हूँ
यू तो मै भारत की शमो सहर देख रहा हू
मै तो गंगा का सफाई अभियान उन बेज़ुमान मछलियों के आँसू से देख रहा हू
मै तो स्वच्छ भारत के होते हुए भारत में गंदगी को देख रहा हू
मै तो भारत के फोजियो की वीरता भी देख रहा हू
मै तो जेनयू के छात्रों की
आवाज़े भी सुन रहा हू
मै तो कश्मीरी पथरबाज़ो की कायरता भी देख रहा हू
यू तो मै भारत की आबो हवा देख रहा हूँ
यू तो मै भारत की शमो सहर देख रहा हू
यू तो मै कठुला की दरिंदगी भी देख रहा हू
यू तो मै उन्नाओ की दरिंदगी
भी देख रहा हू
मै तो कानून को बड़े नेताओ की कटपुतली का रंगमंच बनते हुए देख हू
यू तो मै सिद्धू की सत्ता की ताक़त भी देख रहा हू
यू तो मै सलमान के पैसे को भी देख रहा हू
यू तो मै अखंड भारत को देख
रहा हू
यू तो मै भारत की आबो हवा देख रहा हूँ
यू तो मै भारत की शमो सहर देख रहा हू
मै तो अखंड भारत को देखने
निकलता हू
मेरा भारत का यात्रा वृतांत कुछ इस प्रकार इस प्रकार है
मेरी यात्रा भी उस टूटी हुई कश्ती की तरह है जो गहरे पानी में दुब
जाती है
यू तो मेरी कश्ती भी उसी दरिया में घूमने निकलती है
जिसकी शमो सहर आबो हवा ही निराली है
मेरी कश्ती तो गंगोत्री से निकलती है
वो तो कश्मीर की वादियों संग बहती है
वो तो वाघा बॉर्डर और जलियावाला बाघ से घूमते हुए निकलती है
वो तो पंजाब हरयाणा के किसानो के धक्को से चलती है
उसमे तेल तो दिल्ली की जनता भर्ती है
उस कश्ती की रफ़्तार तो अमर जवान ज्योति को देख कर बढ़ती है
वो तो कठुला और और उन्नाओ को देखकर हर रोज़ आग में झुलसती है
वो तो किसानो की मौत का तमाशा देखने मेरे संग खेतो में रूकती है
हम भी वही थम जाते है जहा दो नेता हमारी स्वागत का ढ़ोग रचाते है
यु चुनाव आते ही हमारी कश्ती की झुलसती हुई आग भी बुझ जाती है
यु तो मेरे मन के चोट पर जुमलेबाज़ी से मलहम लगाने की कोशिश की जाती है
यु तो चुनाव जाते ही मेरी हालत भी उसी मतदाता की तरह है
जो किताबो के पैनने में खो जाते है
यू तो मेरी कश्ती भी उसी दरिया में घूमने निकलती है
जिसकी शमो सहर आबो हवा ही निराली है
यूं तो इन आखो में भी सपने है
पर वो आँखे नहीं है जो सपने देख सके
यूं तो मै बोलना चाहता
हूँ पर मै तो बेज़ुबान हूं
यु तो मेरे पास भी एक दिल है
वो दिल जो औरो के विचारो से धरक्ता है
मेरे विचार तो किसी पुस्तकालय में बंद है
यूं तो मै आज भगवा रंग में रंग में रंगा हूं
यु आज मै नील रंग में रंगा हूं
यू तो मै भारत की आबो हवा देख रहा हूँ
यू तो मै भारत की शमो सहर देख रहा हूँ
एडवोकेट ध्रूव सक्सेना
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