बड़ी कमियां है मुझमे जानता हूँ
फिर भी बुरा लगता नहीं
औकात कुछ भी नही जानता हूँ
फिर भी बुरा लगता नहीं
मै हूँ प्राचीन पुरातन सा
गाँधी जैसा अस्तित्व नहीं
ना छमता मेरे अंदर है
क्या किया गलत क्या किया सही
मै ब्रिज का कान्हा जैसा हूँ
नटखट हूँ मै गोपाला हूँ
मै अमृत सा स्वादिस्ट नहीं
मुझे गर्व है विष का प्याला हूँ
मै संतो का संताप नहीं
ना दिन हूँ ना ही रात हूँ मै
मै मृत्यु की जिज्ञासा हूँ और
मइयत की बारात हूँ मै
मै बहुत अधूरा सा लगता
मै पूरा ना हो पाउँगा
मै प्रेमी का वो प्रेम नहीं जो
लौट के भी आजाऊंगा
मानवता नाम हमारा है
कर्तव्यों का पालनकर्ता
ना ही श्रृंगार न ओज हूँ मै
प्रेमी का हूँ मै समरसता
आँखो से सुधा बरसती है
ये नयन निशा को जगती है
मै स्वाभिमान का पक्का हूँ
जो मुझपर अच्छी जंचती है
मै कर्तव्यों से पीछे नहीं हटता
कोई बुरा भले कहे मुझे पर
फिर भी बुरा लगता नही
प्रशांत प्रसून
No comments:
Post a Comment