साहित्य चक्र

21 December 2019

बुरा नहीं लगता


बड़ी कमियां है मुझमे जानता हूँ
 फिर भी बुरा लगता नहीं 
औकात कुछ भी नही जानता हूँ
 फिर भी बुरा लगता नहीं 
मै हूँ प्राचीन पुरातन सा 
गाँधी जैसा अस्तित्व नहीं 
ना छमता मेरे अंदर है 
क्या किया गलत क्या किया सही 
मै ब्रिज का कान्हा जैसा हूँ 
नटखट हूँ मै गोपाला हूँ 
मै अमृत सा स्वादिस्ट नहीं
मुझे गर्व है विष का प्याला हूँ 
मै संतो का संताप नहीं 
ना दिन हूँ ना ही रात हूँ मै 
मै मृत्यु की जिज्ञासा हूँ और
मइयत की बारात हूँ मै 
मै बहुत अधूरा सा लगता
 मै पूरा ना हो पाउँगा
मै प्रेमी का वो प्रेम नहीं जो 
लौट के भी आजाऊंगा
मानवता नाम हमारा है 
कर्तव्यों का पालनकर्ता 
ना ही श्रृंगार न ओज हूँ मै 
प्रेमी का हूँ मै समरसता
आँखो से सुधा बरसती है 
ये नयन निशा को जगती है
मै स्वाभिमान का पक्का हूँ 
जो मुझपर अच्छी जंचती है 
मै कर्तव्यों से पीछे नहीं हटता 
कोई बुरा भले कहे मुझे पर
 फिर भी बुरा लगता नही 

                          प्रशांत प्रसून

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