ऐ मानव ! केवल क्षण भर की ,
पलक झपकते आती तो पलक झपक जात दिखी ।
फिर काहे का गर्व करे रे , जो तुझको रहना इस जग में ,
रह ले बनकर मानव खुशी - खुशी ,
चलता रह अपने पथ , पकड़ डोर कर्म की ,
समय का पहिया कब रुक जाए ।
सूरज भाँति उगे कब ढल जाए ।।
मत कर लालच और और का ,
पास जो है वह काम आए ।
रह ले खुश उसमे जो पास तेरे आ जाए ।।
ऐसा अस्तु कर्म तेरा हों ,
जब जाए तू , भला किया जो ,
वही तेरा जग में नाम बनाए ,
जयपुर ( राजस्थान )
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