साहित्य चक्र

07 December 2019

प्याज के शहर में...!





आ गए देख लो ,प्याज के शहर में,
प्याज ही प्याज है ,प्याज के शहर में।

खा गईं बस्तियाँ ,सब यूँ शर्मों हया,
हम भी यूँ खो गए ,प्याज के शहर में।

ना तुम्हारी कदर, ना हमारी कदर,
प्याज ढूंढें हैं सब ,प्याज के शहर में।

आ पकौड़े तलें ,प्याज सिरका डूबे,
हम तो ढूंढें सकूँ ,प्याज के शहर में।

हमने भी खोल रखा है ,लॉकर यहाँ,
बैंक है एक जहां, प्याज के शहर में।

हम हैं नामी गिरामी ,अमीर आदमी,
बिकने हम यूँ लगे, प्याज के शहर में।

मेरी महबूब नें तो  हैं ,शर्त इक रखा,
प्याज बन के दिखा, प्याज के शहर में।

प्याज हम भी बनें, प्याज तुम भी बनो,
प्याज बन हम रहें, प्याज के शहर में।

मुर्ग बनने को है, मेरे घर में अभी,
प्याज ले कर तू आ, प्याज के शहर में।

मैं परेशां हूँ,  ये है फ़ितरत मेरी,
मैं अकेली  नहीं,  प्याज के शहर में।

ये तो सरकार है , जो कि सुनती नहीं,
यूँ ही रोती रही , प्याज के शहर में।

सब कारिंदे यहाँ, देखते रह गए,
प्याज गायब हुआ प्याज के शहर से।

                                          स्नेहलता द्विवेदी


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