हे मानुस! तूँ सभी जीव में ज्ञानी है - विज्ञानी है।
जैव - जगत में नहीं दूसरा कोई तेरा सानी है।
सकल जगत की इच्छाओं का तूँ राजा है, रानी है।
सच्चाई से दूर भागना बस तेरी नादानी है।।
मैं मुर्गा बन गला फाड़कर तुझे जगाने आता हूँ।
सूरज की किरणों में शामिल होकर धूप खिलाता हूँ।
फूलों की पंखुड़ियों से भौरों को मुक्त कराता हूँ।
और हवा में खुशबू बनकर इधर उधर बिखराता हूँ।।
चिड़ियों के कलरव में घुलकर मीठा गान सुनाता हूँ।
वसुधा के तन से शबनम की धवल वितान उठाता हूँ।
अम्बर में बिखरे तारों को सोने हेतु पठाता हूँ।
दूर क्षितिज के पूर्व छोर से लाली बन मुस्काता हूँ।।
कभी तीव्र आँधी बनकर तेरा सर्वस्व उड़ता हूँ।
मेघ - गर्जना बिजली बनकर बहुधा तुझे डराता हूँ।
नारी के पावन रूपों में नरता तुझे सिखाता हूँ।
कवि के छंदों में नवरस बन सही-गलत दिखलाता हूँ।।
तुझे जगाने हेतु जगत में लाखों जतन किये मैंने।
शारद का धर रूप श्वान बिल्ली बन रटन किये मैंने।
किन्तु तुम्हारी नींद निगोड़ी सागर से भी गहरी है।
संदेशों को बार - बार झुठलाने वाली बहरी है।।
जाग न पाये लेकिन सोचो समय चक्र तो घूमेगा।
जगने वाला आगे बढ़कर उचित फलों को चूमेगा।
इसीलिए संकेतों को मत भूल कभी इंकार करो।
समय चक्र के साथ चलो शाश्वत विधान स्वीकार करो।।
डॉ अवधेश कुमार अवध
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