साहित्य चक्र

16 December 2019

#हां_मैं_भी_आरक्षण_का_विरोधी_हूं!





ज़रा आप सोचिए क्या आप आरक्षण पर ज्ञान बांट कर सही कर रहे हैं या फिर आपको पता ही नहीं है आरक्षण की मूल परिभाषा, क्योंकि मैं भी आरक्षण का विरोध हूं।

हो सकता है आप विद्वान होंगे और पढ़े लिखे भी होंगे। मगर मैं तो इतना ही कहना चाहता हूं आरक्षण पर ज्ञान और अफवाह बांटी जाए। 70 सालों में अगर आरक्षण को हम खत्म नहीं कर पाए, तो कही ना कही इसके लिए जिम्मेदार हम स्वयं है। हम आज तक उन लोगों को जो तुम्हारे हिंदू धर्म के अनुसार निचली जाति के हैं, उन्हें समान दृष्टि से देख ही नहीं पा रहे। अगर मेरी बात आपको गलत लग रही है, जरा आप अपने क्षेत्र, अपने घर और इस पूरे देश में झांक कर देखिए। अब आप सवाल करेंगे कि योग्यता के अनुसार व्यक्ति को नौकरी और उच्च पद मिलना चाहिए। मैं आपके इस सवाल पर सहमत हूं। मगर यह भी कितना उचित है- एक तरफ आप ही योग्यता की बात करते हैं तो दूसरी तरफ आप अपनी परंपरा की बात कर कर उन्हें आज भी नीच और अछूत के रूप में देखना पसंद करते हैं। बस मुझे आपका यह दोहरापन समझ में नहीं आया। आज तक समझने का प्रयास कर रहा हूं। हो सकता है भविष्य में समझ में आ जाए, ना भी आए तो भी अच्छा रहेगा। 

मैंने कई सारे लोगों को सोशल प्लेटफॉर्म पर आरक्षण विरोधी पोस्ट कमेंट और वीडियो शेयर करते हुए देखा है। हां मैं भी आरक्षण का विरोधी हूं, मगर मैं उस समाज का भी विरोधी हूं, जो जातिवाद को को अपनी संस्कृति और धर्म से जोड़कर देखता है। हां मैं उस धर्म संस्कृति का भी विरोध करता हूं, जहां मनुष्यों पर जानवरों से भी बदतर बर्ताव किया जाता है। हां मैं उस मानसिकता का भी विरोधी हूं जो आज भी अपने आप को स्वघोषित विद्वान समझता है। हां मैं उस परंपरा का भी विरोधी हूं जहां पुरुष प्रधान ताकि बात होती है। हां मैं उस समाज का भी विरोधी हूं, जहां आज भी नारी को अबला के रूप में देखा जाता है। 




सबसे पहले आपको पता होना चाहिए आरक्षण की जरूरत हमारे देश व हमारे समाज में क्यों पड़ी ? अगर योग्यता के अनुसार ही हमारा समाज चलता तो आज हमारे विधायक, सांसद, मंत्री अनपढ़ लोग नहीं होते। मैं सिर्फ इस सरकार की ही बात नहीं कर रहा, इससे पहले भी जितनी सरकारें रही हैं उनमें भी कई सारे अनपढ़ लोगों को हमारे जनता द्वारा चुनकर भेजा गया है। आरक्षण की जरूरत इसलिए पड़ी हमारे समाज का एक बहुत बड़ा तक का कई पीढ़ियों से शिक्षा से वंचित रहा है। हम आज तक नहीं जान पाए वो शिक्षा से वंचित क्यों रहें ? हम आज तक नहीं जान पाए हमारा समाज उनके साथ ऐसा व्यवहार क्यों करता है ? हम आज तक उन्हें इंसान ही नहीं मान पाएं, आखिर इंसान नहीं है ? जिनकी हजार पीढ़ियां जातिवाद-सामाजिक भेदभाव का शिकार रही हो, आखिर उनके मन में भी तो पीड़ा होगी ? 


उसी समाज के एक या दो व्यक्तियों का नाम लेना में उचित समझूंगा- डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले आदि। ये ऐसे नाम हैं जिन्होंने कई सारी कठिनाइयों व पीड़ा का सामना करते हुए, हमारे पुरुष प्रधान और जातिवाद समाज से लड़ाई लड़ी। वह भी उस वक्त जब एक निचली जाति के व्यक्ति की परछाई किसी स्वर्ण जाति के व्यक्ति के घर पर पड़ने पर उसकी हत्या कर दी जाती थी। जबकि उस घर का निर्माण करते वक्त वही निकली जाति के लोग काम करते थे। बताइए यह कैसा इंसाफ था तुम्हारे समाज का ? जरा हम भी तो जानें तुम्हारी संस्कृति, तुम्हारी सभ्यता, तुम्हारी परंपरा..!

मेरे नजरों में तुम्हारी संस्कृति, सभ्यता, परंपरा सिर्फ पुरुष प्रधान मानसिकता और स्वघोषित विद्वानों से भरी है, बाकि आप अपनी संस्कृति, सभ्यता और परंपरा का सम्मान करते रहिए। मगर मुझे भरोसा है तुम्हारे संस्कृति- सभ्यता एक दिन जरूर अपने आप ही खत्म हो जाएगी। मेरे भरोसे के पीछे आप सभी जानते हैं। जरा झांकिए अपने और अपनी संस्कृति के अंदर क्या वह धीरे-धीरे खत्म तो नहीं हो रही ? 

                          #दीपक_कोहली "पागल"


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