बात 2014-15 के आसपास की है। मैं मीडिया का कोर्स करने के लिए दिल्ली आया था। कोर्स के दौरान मुझे कुछ मैम और सर ने पढ़ाया। जो हमारे डायरेक्टर थे, उन्होंने हमसे बोला कि बेटा पढ़ाओ - बेटी बचाओ पर एक शॉर्ट मूवी बनाओ। जो स्लोगन देखकर हम सभी बच्चे अचंभित थे, कि आखिर इसे कैसे बनाएं ? उस टाइम में समझने और ज्ञान का अभाव था। मगर आज समझ आ रहा है, कि वह स्लोगन एकदम सही था। जब हर बेटा, पुरुष, लड़का शिक्षित होगा, तभी हमारे समाज में स्त्री का सम्मान संभव है। शिक्षित का अर्थ है उसे स्त्री का सम्मान करने आना चाहिए स्त्री के बारे में जानकारी होनी चाहिए। उसे यह मालूम होना चाहिए कि मैं किस तरह से पैदा हुआ हूं। मुझे एक स्त्री ने जन्म दिया है। आज हमारे देश में हर दिन हजारों सैकड़ों बच्चियां और स्त्री रेप, उत्पीड़न का शिकार होती। रेप वह भी है, जब हम एक स्त्री को देखकर अपने मन में गलत विचार उत्पन्न करते हैं।
रेप, उत्पीड़न जैसी घटनाएं सिर्फ स्त्री और महिलाओं के साथ नहीं होते बल्कि कई सारे पुरुष और लड़के भी इसके शिकार होते हैं। चाहे वह होटल में जॉब करने वाले लड़के हो, या फिर बड़े-बड़े घरों में नौकर के रूप में काम करने वाले, बल्कि इतना ही नहीं आजकल तो सोशल मीडिया के जरिए भी सेक्स का काम खूब फल फूल रहा है।
समझ नहीं आता हमारा समाज आज किस दिशा की ओर जा रहा है। जहां एक तरफ धर्म के पुजारियों ने भी इस समाज में खूब गंदगी फैला रखी है, तो वहीं हमारे पापी नेता भी कम नहीं हैं। उत्पीड़न, शोषण जैसी घटनाएं तो प्राइवेट - सरकारी दफ्तरों में खूब होता है। फिर चाहे वह मीडिया संस्था हो या फिर आईटी कंपनी। इसमें वो लोग भी शामिल हैं जो अपने आप को समाजसेवी तो कहते हैं, मगर उनकी असली हकीकत कुछ और ही होती है। आप मेरी बातों को मानिए या ना मानिए मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता मगर यह मेरा अनुभव रहा हैं। मैं दिखा सकता हूं और दावे के साथ कहता हूं, आप पूछिए और सर्वे कीजिए आपको हकीकत पता चल जाएगी।
इतना ही नहीं उत्पीड़न-शोषण जैसी घटनाओं को बढ़ावा देने में कुछ महिलाओं का भी बहुत बड़ा योगदान है। जिसमें कुछ लड़कियां और महिलाएं पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाती हैं। कुछों की तो मजबूरी और हालात उन्हें यह करने पर मजबूर करती हैं। मगर ऐसी भी क्या मजबूरी जहां जिस्म और शरीर का सौदा हो। हां भाई साहब होता है। पेट की आग और परिवार की गरीबी सब करने पर मजबूर कर देती है।
यहां पर मैं अपने गांव की एक छोटी सी घटना का जिक्र करना चाहूंगा। घटना स्कूल की है, स्कूल का अध्यापक एक चौथी कक्षा में पढ़ रही छोटी सी बच्ची को गंदी वीडियो दिखा रहा था। शायद वीडियो उसने कई बार दिखाया होगा। मगर उस बच्ची ने थक हार कर और डरते डरते अपने घरवालों को बताया। आप जरा सोचिए कक्षा चार में पड़ रही मासूम बच्ची अपने घर वालों को क्या बता सकती है ? इस घटना को लगभग 2 साल से ऊपर हो चुका है। बस बच्ची का परिवार बहुत गरीब था। हां हो सकता है बच्ची के परिवार ने इस गलती के लिए टीचर से कुछ पैसे ले ली है। मगर उस बच्ची के चेहरे की डर और भाव को मैं आज भी उसके चेहरे पर महसूस करता हूं। अब आप बताइए गलती किसकी थी ? क्या वह बच्ची बड़ी होकर अपने मां-बाप पर भरोसा करेगी ? क्या वह मां बाप अपनी आत्मा को जवाब दे पाएंगे ?
आज भी हर रात कई परिवारों में बिना पत्नी की इजाजत से उसके साथ सेक्स किया जाता है। क्या यह रेप नहीं है ? भाई साहब रेप है। मगर उसे शादी का बंधन दबा देता है। आज भी हमारे समाज में स्त्री की आवाज दबाई जाती है। अगर भरोसा नहीं तो जरा आप अपने परिवार में झांक कर तो देखिए। मैं खुद मानता हूं कि मैं पुरुष प्रधान मानसिकता का शिकार हूं। हां अब धीरे-धीरे उस मानसिकता को जला रहा हूं।
बलात्कार, यौन शोषण, उत्पीड़न जैसी घटनाओं का जिम्मेदार हम खुद और हमारी पुरुष प्रधान मानसिकता वाला समाज हैं। मैं दावे के साथ आज भी कहता हूं- प्रियंका रेड्डी एक डॉक्टर थी और एक समृद्ध परिवार से थी, तभी उसका केस प्रकाश ना आया या समाज के सामने आया। अगर यही प्रियंका किसी गरीब की बेटी होती तो शायद ही यह केस प्रकाश ना आता और पूरे देश के सामने उजागर होता। मैं आप लोगों से माफी चाहता हूं मुझे ऐसा कहना पड़ रहा हैं, क्योंकि प्रियंका के साथ जो हुआ और जिस रात हुआ उसकी पहली रात भी कुछ दरिंदों द्वारा किसी एक और नारी का शरीर नोंचा गया। मगर वह उजागर तब हुआ, जब #प्रियंका_रेड्डी_रेप_हत्या_कांड सामने आया। अगर प्रियंका एक पढ़े लिखे और समृद्ध परिवार से नहीं होती शायद ही यह केस पूरे देश के सामने आता। अगर आपको याद हो कुछ महीने पहले राजस्थान और उत्तराखंड में भी रेप के बाद हत्या का मामला सामने आया थे। मगर वह एक समृद्ध परिवार और पढ़े-लिखे परिवार से नहीं थे, इसलिए उनका मामला इतना तूल नहीं पकड़ा, क्योंकि हमारी सरकारें है इन मामलों को दबा देती हैं। हमारा मीडिया भी यहीं काम सरकार के साथ करता आया है। अब देखना कुछ दिन तक रेप, शोषण, बलात्कार जैसी घटनाएं हमारे मीडिया एकदम से ज्यादा दिखाने लग जाएगी। मगर रेप, बलात्कार, यौन शोषण हर रोज - हर महीने - हर साल होते हैं।
हमारे ही समाज में कुछ तो ऐसे भी हैं जो रेप, बलात्कार, यौन शोषण जैसे मामलों में भी अपना धर्म और जातिवाद खोजना शुरू कर देते हैं। कोई मुस्लिमों पर आरोप लगाता है, कोई दलितों पर आरोप लगाता है, कोई ब्राह्मणों पर आरोप लगाता है, कोई हिंदू पर आरोप लगाता है। मैं पूछता हूं क्या हैं हमारे भारतीय समाज-संस्कृति-सभ्यता में दम जो पुरुष प्रधान मानसिकता को उखाड़ फेंके और कल्पना कर बना सकें एक समान अधिकारों वाला भारतीय समाज ?
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