साहित्य चक्र

17 December 2019

महंगाई और बेरोजगारी मानव जीवन के ‘राहु-केतु’




मंहगाई और बेरोजगारी, दोनों ही आम जनमानस को परेशानी में डालती हैं। अब बात करें ''महंगाई बनाम बेरोजगारी'' की तो निःसंदेह कहा जा सकता है कि दोनों तथ्य ही मानव जीवन के लिए बुरे होते हुये भी सरकार द्वारा और बुराईयों का चोला ओढाया जा रहा है। एक गाने की पंक्तियां है कि 'सखी सैंयां तो खूबही कमात हैं, महंगाई डायन खाए जात है'। जाहिर है कि बेहद काम कर लो, खूब कमाई कर लो, लेकिन अगर महंगाई कम नहीं होती तो परिवार पालना मुश्किल है। ऊपर से अगर बेरोजगारी भी बढ़ती जाय तो 'सोने पर सुहागा' हो जाय।

एक तरफ महंगाई मार रही है और दूसरी तरफ बेरोजगारी जीवन को त्रस्त कर रही है। सर्वेक्षण में भी 'बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार' जैसे संकटों पर देश में बन रही आम राय का अंदाजा लगा। सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले अनेक लोगों ने बेरोजगारी और नौकरी गंवाने की आशंका जैसे मुद्दों पर गहरी चिंता जाहिर की। सरकारी नौकरी की बात करें तो सरकार ने नौकरियों को संविदा तक अटका दिया है। निजी क्षेत्र में पैसे कम है और कार्य के लिए शोषण ज्यादा है। यदि कोई अपना ही व्यवसाय चलाना चाहे तो पैसा है नहीं और रही-सही कसर टैक्स पूरी कर देंगे। यदि बेरोजगारी बढ़ती रही तो न भारत विकसित होगा और न ही भ्रष्टाचार समाप्त होगा। 'सोने की चिड़िया' कहे जाने वाले देश में पढ़े-लिखे युवा रोजगार के लिए तड़प रहे हैं और अनपढ़ चुनाव जीत जायें तो उनके घर मुर्गी 'सोने का अण्डा' दे रही है।

दूसरी ओर कृषि प्रधान देश में ही दाल-सब्जी महंगी हो तो उचित नहीं होगा कि भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाय। आसमान छूती महंगाई ज्यादातर लोगों के लिए चिंता का सबब बन रही है। जनवरी 2017 के सर्वेक्षण में जहां महंगाई को लेकर 10 फीसदी लोगों ने चिंता जाहिर की थी। वहीं, नए सर्वेक्षण में 30 फीसदी लोग इससे चिंतित दिखे। देश के विभिन्न भागों में बाढ़ और सूखे ने फसलों को एक जैसा नुकसान पहुंचाया है, इससे पैदावार में कमी और दामों में बढ़ोतरी हुई है। दाम आसमान में और सरकार दाल-सब्जी को दूसरे देशों में निर्यात कर रही है। रही-सही कसर बिचैलिये पूरी कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव, हर बार राजनेताओं में मुख में दो जुमले जरूर होते हैं।

पहला, महंगाई कम होगी, महंगाई दूर की जायेगी और दूसरा रोजगार बढ़ेगा, बेरोजगारी कम होगी, लेकिन हर बार होता इसके विपरीत है। दाल, सब्जी, फल, राशन और डीजल-पैट्रोल, सबसे पहले इनके दामों में वृद्धि की जाती है। अब बचा रोजगार तो एक सर्वेक्षण के अनुसार, जिसमें हिस्सा लेने वाले 55 फीसदी लोगों ने माना कि रोजगार के अवसर पैदा करने की दिशा में जितना प्रयास होना चाहिए, उतना इस सरकार ने आज तक नहीं किया।

अतः मंहगाई और बेरोजगारी से आम जीवन त्रस्त है। यहां जरूरत है कि महंगाई में घटोत्तरी हो और रोजगार में बढ़ोत्तरी हो। तब ही वो समय आयेगा, जब कह सकते हैं कि हमारा देश विकास सीढ़ीयां चढ़ रहा है। बहरहाल, कुल मिलाकर संक्षेप में कह सकते हैं कि 'महंगाई और बेरोजगारी' मानव जीवन में की ग्रह दशा में 'राहु-केतु' की भांति है। इन 'राहु-केतु' का प्रभाव सरकार ही कम या खत्म कर सकती है, लेकिन सरकार प्रयास करने को राजी नहीं है।

                                                राज शेखर भट्ट
                                          सम्पादक, देवभूमि समाचार


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