साहित्य चक्र

01 December 2019

जयतु भारतम् ! जयतु संस्कृतम् !

चल तो दिये हो तुम हमें धर्म पढ़ाने,
क्या आचरण में भी धर्म ला पाओगे 


दाढ़ी मूंछें तो कटा सकते हो तुम ,
क्या शिखाबंधन भी अपनाओगे 
खतना  तो  छुपा  सकतें  हो तुम ,
उपनयन को धारण कर पाओगे 
ऐ गौ माँ का छेदन करनें वाले ,
क्या कर्णवेधन तुम कर पाओगे 


चल तो दिये हो तुम ................

कभी न कीसी का वंदन करने वाले 
क्या  संध्यावन्दन   कर   पाओगे 
ऐ नमाज़ी निराकार ब्रम्ह उपासक 
कैसे तुम  मूर्ति  पूजन  समझाओगे 
कल जो सनातनी कठोर नियमों से ,
पीछा छुड़ा गये तुम ,
क्या पुनः वेदमार्गों पर ,
नियमपरायण बन पाओगे 


चल तो दिये हो तुम ..........................

हृदय पर हाथ रख जरा बताओ तो ,
क्या वराह महिमा तुम उचार पाओगे 
भाषा की यह बात नहीं कि
 सौहार्द दिखाया जायेगा 
प्राण भलें न बच पाये पर 
धर्म नहीं हिल पायेगा 
प्रण है महामना के मानस पुत्रों का ,
बिस्मिल्ला करने वाले तुम ,
श्री गणेश नहीं कर पाओगे 

  
जयतु भारतम् ! जयतु संस्कृतम् !!

                             सेवाजीत पाठक(अभेद्य)



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