चल तो दिये हो तुम हमें धर्म पढ़ाने,
क्या आचरण में भी धर्म ला पाओगे
दाढ़ी मूंछें तो कटा सकते हो तुम ,
क्या शिखाबंधन भी अपनाओगे
खतना तो छुपा सकतें हो तुम ,
उपनयन को धारण कर पाओगे
ऐ गौ माँ का छेदन करनें वाले ,
क्या कर्णवेधन तुम कर पाओगे
चल तो दिये हो तुम ................
कभी न कीसी का वंदन करने वाले
क्या संध्यावन्दन कर पाओगे
ऐ नमाज़ी निराकार ब्रम्ह उपासक
कैसे तुम मूर्ति पूजन समझाओगे
कल जो सनातनी कठोर नियमों से ,
पीछा छुड़ा गये तुम ,
क्या पुनः वेदमार्गों पर ,
नियमपरायण बन पाओगे
चल तो दिये हो तुम ..........................
हृदय पर हाथ रख जरा बताओ तो ,
क्या वराह महिमा तुम उचार पाओगे
भाषा की यह बात नहीं कि
सौहार्द दिखाया जायेगा
प्राण भलें न बच पाये पर
धर्म नहीं हिल पायेगा
प्रण है महामना के मानस पुत्रों का ,
बिस्मिल्ला करने वाले तुम ,
श्री गणेश नहीं कर पाओगे
जयतु भारतम् ! जयतु संस्कृतम् !!
सेवाजीत पाठक(अभेद्य)
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