साहित्य चक्र

29 December 2019

*बस अभी जगा हूँ*



*बस अभी जगा हूँ , सपनो के भवर जाल से,*
*कदम अभी चले है,जो फॅसे थे मकड़जाल में,*

*मन की जकड़न ने भी अभी अंगड़ाई ली है।*
*पैरो की बेड़ियों ने भी अभी पैरो को रिहाई दी है।।*

*ह्रदय की धड़कन ने भी तोड़े है अब भय के जाले,*
*मंजिल मिले ना मिले अब कदम नही रुकने वाले,*

*माना राह के काँटो ने पैरो को कई बार छला है।*
*ठोकर खाते पैरो ने खुद को पत्थर सा बुना है।।*

*सम्मान पाने के लिये झूठ से समझौते किये थे मैंने,*
*अब सच्चाई से जियूँगा ये वादा खुद से किया है मैंने,*


                                नीरज त्यागी

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