सुबह हुई है सिमट धुंध में, ठिठुरन करती अगुआई ।
रंग सभी कुहरे में लिपटे, शीत लहर यूँ गहराई ।
शरद उगलती भांप साँस से, जमते पलकों के घेरे ।
सिकुड़न बढ़ती अंग -अंग में, हुए ठंड के जब फेरे ।
ढके ओस से गांव शहर सब, नहीं दीखती परछाई ।
रंग सभी कुहरे में लिपटे, शीत लहर यूँ गहराई ।
दुबका है मधुमास धुंध में, पतझड़ की अब बारी है ।
पाला लटका है पेड़ों पर, ओलों की तैयारी है ।
ओढ़ रजाई कम्बल बैठे, हाल बुरा अब तो भाई ।
रंग सभी कुहरे में लिपटे, शीत लहर यूँ गहराई ।
अकड़ बढ़ी सर्दी की ऐसी, जकडन में है जग सारा ।
जीरो डिग्री से भी नीचे, जा पहुंचा
है अब पारा ।
कांप रहा है गात दीन का, शिशिर हुआ
है दुखदाई ।
रंग सभी कुहरे में लिपटे, शीत लहर
यूँ गहराई ।
दिन हैं छोटे रातें लंबी, आग सेकतें
हैं साये ।
लगा दिसम्बर अब गाजर के, हलवे को मन ललचाये ।
तिल के लड्डू ,मूंगफली अरु रेवड़ियां मन को भाई ।
रंग सभी कुहरे में लिपटे, शीत लहर
यूँ गहराई ।।
रीना गोयल
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