कन्यादान हुआ जब पूरा
आया समय विदाई का
खुशी-खुशी सब काम किया था
सारी रस्म अदाई का
अश्रुपूरित भीगे नयनों से
बिटिया ने जब पूछ लिया
क्या मैं अशं नहीं आपका
जो मुझे छोड़ दिया
मैं हूँ आंगन की फुलवारी
पापा ने सदा कहा मुझे
पलभर भी मेरे रोने को
कभी नहीं सहा तुमने
इस घर के कोने में अब
मेरा कोई स्थान नहीं
मेरे फूट फूट कर रोने का
जैसे पापा को भान नहीं
अंतिम बार घर की देहरी
क्यों मुझसे पुजवाते हो
आकर इन लोगों को पापा
आप नहीं धमकाते हो
चाचा , ताऊ नहीं रोकते
भैया से भी आस नहीं
क्या गुनाह कर दिया बेटी होने का
क्यों आता कोई पास नहीं
प्यारी बिटिया की बाते सुनकर
पिता नहीं रह सका खड़ा
झरने लगे नयनों से अश्रु
बहदवास सा दौड़ पड़ा
मां को लगा कोई गोद से
सब कुछ जैसे छिन चला
फुलवारी से फुल सभी
चुपके से कोई बिन चला
बिटिया के जाने पर
जैसे घर भी बेसुध हो रहा
कभी न रोने वाला बाप
आज फूट फूट कर रो रहा
- चंचल महावर
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