साहित्य चक्र

14 December 2019

औरत


सोच रही वो अंतिम दौर में कैसे बीता उसका जीवन 
कैसे उसने किरदार निभाए कैसे पहुंची अंतिम क्षण
जन्म लिया तो देवी बनी
पिता का बेटी बनी,
मां की लाडो बनी, 
बहन की छोटी बनी,
दादा की लाठी बनी,
 दादी का चश्मा बनी, 
 चाचा की भतीजी बनी,
चाची की शैतान बनी,
भाई की बहना बनी, 
भाभी की नंदन बनी,
आंगन की रौनक बनी,
घर की इज्ज़त बनी,
ससुराल गई तो लक्ष्मी बनी,
पढ़ाई में सरस्वती बनी,
पति की अर्धांगिनी बनी,
ससुर की बहू बनी,
सास का मान बनी,
देवर की भाभी बनी,
देवरानी की जेठानी बनी,
बच्चों की जब मां बनी,
एक नई पहचान बनी,
स्कूल में अभिभाभक बनी,
मोहल्ले की चाची बनी,
उसके बाद फिर समधन बनी,
बहू की फिर सास बनी,
पोता की दादी बनी,
नाती की नानी बनी,
समय तो अब बीत गया ,
ऐसे अनेक किरदारों की वह पटरानी बनी।

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                                                       ✍️ नीलेश मालवीय "नीलकंठ"


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