साहित्य चक्र

28 May 2019

‘हमारा सपना- उत्तराखंड हो ऐसा अपना’


प्रस्तावना- उत्तराखंड एक हिमालयन पर्वतीय राज्य है। जो अपनी सुंदरता और लोकप्रियता के लिए पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है। उत्तराखंड की बोली-भाषा इस राज्य को एक अलग पहचान दिलाती है। यहां की सुंदरता इसकी सौन्दर्य को दर्शाती है। देवों का लोक, देवों की भूमि अगर कहीं है, तो वह अपना उत्तराखंड है।

सारांश- उत्तराखंड राज्य की स्थापना 9 नवंबर 2000 को हुई। इससे पहले हमारा राज्य उत्तरप्रदेश का हिस्सा था। आपको बता दें, अलग राज्य के लिए हमारे कई उत्तराखंड वासियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। कई सालों की कड़ी मेहनत और कई आंदोलनों के बाद उत्तराखंड को 9 नवंबर 2000 में एक अलग राज्य का दर्जा मिला। अलग राज्य की मांग मुख्य तौर पर पर्वतीय क्षेत्रों का विकास, मूलभूत सेवाएं पहुंचाना था। उत्तराखंड राज्य बनने से क्षेत्र का विकास तो हुआ है, परंतु आज भी कई इलाके ऐसे है, जहां मूलभूत सेवाएं अभी तक नहीं पहुंच पा रही हैं। प्रदेश कई बार आपदाओं का शिकार हो चुका है। प्रदेश में लगातार होता पलायन यहां की मुख्य चुनौती बनी हुई है। ग्रामीण इलाके सुनसान पड़े है। जंगलों में लगातार कटान हो रहा है। खेती बिल्कुल खत्म हो गई है। जो सपना हमारे आंदोलनकारियों ने देखे थे, वो धरे के धरे रह गए हैं। प्रदेश के इन हालतों के लिए प्रदेश की जनता के साथ-साथ यहां के राजनेता सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। जब उत्तराखंड राज्य की मांग उठ रही थी, तब हमने कई सारे सपने देखे थे।

आज प्रदेश को बने 18 साल हो चले है, इसके बावजूद भी हम उन सपनों को जमीन पर नहीं उतार पाए हैं, जो हमारे आंदोलनकारियों ने देखे थे। हमारा राज्य आज एक नई दिशा की ओर तो बढ़ रहा है, परंतु अपनी पहचान धीरे-धीरे खो रहा है। ऐसे में हमारी राज्य सरकार को राज्य की पहचान को ध्यान में रखते हुए, योजनाओं को धरातल पर लागू करना चाहिए। जिससे हमारी संस्कृति, सभ्यता, पुराणतत्वों बने रहें।
अगर उत्तराखंड अपनी संस्कृति-सभ्यता को यूं ही खोता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड अपनी पहचान जल्द खो देगा। राज्य की जनता से लेकर यहां के राजनेताओं को इन विषयों को गंभीरता से लेना चाहिए। तभी प्रदेश की संस्कृति और सभ्यता बरकरार रह पाएंगी। 

हमें अपने सपनों का प्रदेश बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, तभी यह संभव हैं। हमें प्रदेश के स्वास्थ सेवा, शिक्षा व्यवस्था, मूलभूत विकास और सेवाओं को लेकर काम करना होगा। आज भी राज्य के कई क्षेत्रों में स्वास्थ सेवा उपलब्ध नहीं हैं। शिक्षा व्यवस्था तो भगवान भरोसे है। प्रदेश का विकास राज्य को अपनी पहचान से दूर ले जा रहा है। जिन चीजों से हमारी पहचान है, उन्हीं को हम भूल रहे है। जो राज्य भविष्य के लिए चिंता का विषय है। हमें अपने जंगलों, प्राकृतिक स्त्रोतों, सभ्यताओं को बचाने हेतु कार्य करने चाहिए, जिससे हमारे राज्य की पहचान बनी रहें। राज्य से जिस गति से पलायन हो रहा है, वह राज्य के लिए सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही हैं।

पलायन के लिए हमारी प्रदेश सरकार ने पलायन आयोग का गठन तो कर लिया, लेकिन जमीन पर कार्य करना भूल गई। प्रदेश के लिए यह विडंबना है, कि लगातार प्रदेश से पलायन हो रहा है। ग्रामीण इलाकों का हाल, तो बताने योग्य है ही नहीं। कई गांव तो खाली हो चुके है, कई गांव में बस एक-दो परिवार ही बचें हैं। जरा सोचिए कैसे इन गांवों का हाल पहले कैसे हुआ करता होगा, आज यहीं गांव इंसानों के लिए रो रहे हैं, जहां कभी इंसानों का जमवाड़ा और जमीन के लिए लड़ाइयां हुआ करती थी। आज वहीं जमीन सुनी पड़ी हुई है।

हमारा सपना- हम सभी प्रदेशवासियों को राज्य की पहचान बचाने के लिए एक सपना एक साथ देखना होगा, तभी हमारे सपनों का राज्य हमें मिलेंगा। सपना- हर गांव - कस्बों में मूलभूत सेवाएं हो, सभी को सही स्वास्थ सेवाएं मिले, सभी को एक समान शिक्षा प्रदान हो। जातिवाद को खत्म कर, सभी हितों के लिए काम करने की जरूरत है। प्रकृति की सुंदरता को बचाना होगा, प्राकृतिक चीजों को सही से इस्तेमाल करना होगा। चाहे वह पानी हो या फिर शुद्ध खेती। हमें संस्कृति के बारे में भी सोचना है, तभी हमारी बोली-भाषा और परंपरागत सांस्कृतिक सभ्यता आगे हमारे नई पीढ़ी के साथ चलेगीं। इन सभी के लिए हमें एक साथ आगे आने की जरूरत है। प्रदेश के हालातों, समस्याओं को समझना होगा, हमें एक नये सपना हर दिल में बसाना और जगाना होगा, तभी हमें हमारे पुर्वजों की जन्मभूमि मिल पाएंगी, जैसे हम लगातार खोज रहे है। आइए एक कदम प्रदेश के नये सपने की ओर बढ़ते है।

काश..! ऐसा होता हमारा उत्तराखंड- काश..!  हमारा उत्तराखंड भी अपनी पहचान को विश्व की धरा तक पहुंचा पाता। यहां भी करोड़ों की तादाद में पर्यटक आते और यहां की खूबसूरती को एक नया रूप देते। युवाओं को अच्छी शिक्षा और अच्छे संसाधन मिले पाते।

जिससे हमारे प्रदेश के युवा भी खेल, साहित्य जैसे क्षेत्रों में अपने प्रदेश का नाम रौशन कर पाते। गांवों के हर घर में बिजली होती, पानी की सही प्रयोग हो पाता। जिससे प्रदेश की खेती बढ़ती, रोजगार को अवसर खुलते। काश..! ऐसा होता हमारा उत्तराखंड। हर स्कूलों में शिक्षिक होते, हर विद्यार्थी के पास कम्प्यूटर होता, हर किसान को सही दाम मिलता, हर नागरिक के पास एक समान अधिकार होता, हर गांव में सही विकास होता, हर व्यक्ति अपनी भाषा-बोली में बोलता, हर कोई अपनी सांस्कृतिक पहनावे में होता, काश..!  मेरा उत्तराखंड ऐसा होता।

उपसंहार- उत्तराखंड राज्य देश के पर्वतीय राज्यों में सबसे सुंदर सबसे प्यारा राज्य है। जो अपनी खूबसूरती के लिए देश के कौने-कौने में जाना जाता है। राज्य को बने 18 साल से ज्यादा का समय हो गया है। इसके बावजूद भी हम अपनी मूलभूत सेवाओं को सही और मजबूत नहीं बना पाएं है। जिसके लिए हम खुद जिम्मेदार है। क्यों प्रदेश के सरकारी नौकर शाही मेट्रो शहरों की ओर भाग रहे है। प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में सिर्फ गरीब तबका बचा हुआ है। जो लगातार संघर्ष भरा जीवन जीने के लिए मजबूर हो रहा है। उम्मीद करता हूं, प्रदेश के इन हालातों के लिए प्रदेश सरकार और हमारी प्रदेश की जनता जल्दी ही कुंभकर्णीय नींद से जागेंगी। हमारा उत्तराखंड भी जल्द, हमारे उत्तराखंड वासियों के सपनों का राज्य बनेगा।


                                                                           लेखक- दीपक कोहली 



27 May 2019

विदेशी नागरिक क्यों नहीं लड़ सकता है चुनाव ?


अगर भारतीय मूल की नारी विदेशों में चुनाव लड़ सकती है, तो क्या भारत में कोई विदेश महिला चुनाव नहीं लड़ सकती..?

मेरे इस सवाल से आप थोड़ा हैरान तो जरूर होगें, क्योंकि सवाल ही कुछ ऐसा है। हम बहुत खुश होते हैं, जब हमारे देश की कोई महिला विदेशों में चुनाव लड़ती हैं या फिर किसी बड़े पद पर विराजमान होती हैं। हमारे न्यूज चैनल भी इन खबरों को बड़े ही शान से दिखाते हैं, और पूरे देश को गर्व महसूस करते हैं। जो हमारे देशवासी इस गर्व की बात को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं। थोड़ा सोचिए..! कोई विदेशी महिला हमारे देश के ऊंचे पद पर क्यों नहीं बैठती हैं। क्या हमारे देश का कानून ऐसा है या फिर हमारा देश इसे स्वीकार नहीं कर सकता। कई सवाल मन में पैदा होते हैं। आखिर क्यों हमारे देश में कोई विदेश महिला चुनाव नहीं लड़ सकती। अगर लड़ती भी हैं, तो क्यों उसे भारतीय नागरिक स्वीकार नहीं करते हैं ? 

क्या कोई विदेशी हमारे देश की राजनीति और ऊंचे पद पर विराजमान नहीं हो सकता ? वैसे शायद आप ने पहले कभी ऐसा सोचा ही नहीं होगा। मेरा यह सवाल आपको सोचना पर मजबूर जरूर कर रहा होगा। क्या हमारा देश विदेशी लोगों को ऊंचे पदों पर स्वीकार नहीं करता या फिर हमारे देश के ऊंचे पदों पर कोई विदेशी बैठना ही नहीं चाहता। एक बात तो जरूर है। यह सवाल हमारे देश के लिए बेहद खास और महत्वपूर्ण है। इस सवाल से हमें अपनी देश की कई नीतियों और नियमों के बारे में पाता चलता हैं। जब से हमारा देश आजाद हुआ है, तब से हमारे देश के ऊंचे पदों पर कोई विदेशी नहीं बैठा है। इसे चाहे आप हमारे देश का मजबूत कानून समझे या फिर हमारे देश की मजबूरी। इतना जरूर कह सकते है कि हमारे देश के ऊंचे पद पर विदेश नागरिक बहुत ही कम बैठते है या बैठते ही नहीं हैं। मगर किसी दूसरे देश में हमारे देश का कोई नागरिक किसी पद पर बैठता है, तो हमारे देश में उसे गर्व की बात मान कर उस व्यक्ति को बढ़े सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।

इतना ही नहीं बल्कि दूसरे देश में नौकरी करने या मिलने को भी हमारे देश में बहुत बड़ी बात समझी जाती है। चाहे नौकरी किसी भी पद पर ही क्यों ना हो। इन बातों से दुख होता है, आखिर हम अपने देश को उस लायक नहीं बना पाएं है, जिस लायक हमारे पूर्वजों और स्वतंत्रता सेनानियों ने इसे बनाने का सपना देखा था। आजादी के 70 साल बाद भी देश की शिक्षा व्यवस्था शून्य है। देश के युवा शिक्षा के लिए विदेशों की ओर भाग रहे है। जो हमारे देश के लिए सबसे बड़ी चिंता का सबक हो सकता है। इन विषयों को कोई भी सरकार या राजनीतिक पार्टियां नहीं समझ पा रही है। हमें इन सभी विषयों पर मंथन करना होगा और सोचना होगा आखिर हमारे देश की व्यवस्था कैसे सही होगी। जिससे देश का युवा देश के लिए काम करें। 

                                                           ।।संपादन- दीपक कोहली।।


26 May 2019

मैं कौन हूँ

आखिर कौन हूँ मैं 
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मैं कौन हूँ 
आखिर कौन हूँ मैं!
इसी में उलझती रही हूँ 
जब भी उठा है प्रश्न 
मन के भीतर....!

जड़ हो या चेतन 
मानव हो या पशु 
स्त्री हो या पुरुष 
सभी तो अंश हैं 
उसी एक ईश्वर के,
तो मैं ईश्वर का अंश हूँ.....!!

सभी अंश है उसके,
किसी  किसी 
विशेष निमित्त के 
आयें हैं इस वसुधा पर,
जिस दिन 
वह निमित्त 
हो जायेगा पूर्ण 
समाप्त हो जायेगी 
मेरे इस “ मैं “ की यात्रा....!!!

जिसके अंश हैं 
उसी में मिल कर 
हो जायेंगे एकाकार,
तब किसलिए उलझें इस प्रश्न में 
आखिर कौन हूँ मैं!

ईश्वर का अंश हूँ 
केवल और केवल 
यही जानती हूँ मैं!


                                    डा० भारती वर्मा बौड़ाई



25 May 2019

अगर नाथूराम गोडसे देशभक्त था, तो महात्मा गांधी क्या थे ?


देश की जनता के लिए सोचने वाली बात यह है, अगर नाथूराम गोडसे देशभक्त है तो महात्मा गांधी को देश की जनता क्यों राष्ट्रपिता मानती हैं। क्या महात्मा गांधी सच्चे देश भक्त नहीं थे ? या फिर महात्मा गांधी अहिंसा के पुजारी थे ? आज देश की जनता के मन में कई सवाल खड़े हो रहे होंगे। जिनमें महात्मा गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे को देशभक्ति की उपाधि से लेकर गांधी जी का अपमान, गांधी के राष्ट्रपिता की उपाधि पर भी प्रश्न खड़े होते हैं। जिस व्यक्ति ने भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाई आज उसी पर सवाल उठाएं जा रहे है। हर इंसान के अंदर अच्छाई-बुराई दोनों छिपी होती हैं, बस देखने का नजरिया होना चाहिए। महात्मा गांधी (भारत के राष्ट्रपिता) के हत्यारा नाथूराम गोडसे को कुछ लोग देशभक्त तो कुछ लोग देश का पहला आतंकी कहते हैं।





जिससे देश की जनता के मन में कई सवाल पैदा हो रहे हैं, जैसे- क्या महात्मा गांधी या देश के राष्ट्रपिता का हत्यारा कैसे देशभक्त हो सकता है ? अगर गांधी का हत्यारा देशभक्त था, तो महात्मा गांधी क्या थे ? क्या देश की आजादी में महात्मा गांधी का योगदान कुछ भी नहीं था ? अगर नहीं था तो देश की जनता उन्हें क्यों आज भी सबसे ज्यादा प्यार और सम्मान की दृष्टि से देखती है ?

कही ऐसा तो नहीं..! महात्मा गांधी के खिलाफ एक साजिश के तहत देश में बुराइयां फैलाई तो नहीं जा रही हैं। अगर ऐसा है तो भारत सरकार को इन शक्तियों पर रोक लगानी चाहिए। महात्मा गांधी भारत के राष्ट्रपिता के रूप में जाने जाते है। इस साजिश के तहत आज देश की गरिमा और अखंडता खत्म होने के कगार पर है।

जिसका जो मन आ रहा है, वह व्यक्ति देश के महापुरुषों के लिए कुछ भी बोला जा रहा है। जो देश को बांटने का काम कर रही हैं। हमारी सरकारों और राजनीतिक पार्टियों को इस बारे में सोचना होगा, आखिर देश के सभी महापुरुषों का देश की आजादी में समान योगदान रहा है। चाहे वह भगत सिंह हो या फिर चंद्रशेखर आजाद सभी का देश की स्वतंत्रता में समान योगदान रहा हैं।
ऐसे में हमें उन शक्तियों को समझना चाहिए जो देश को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। 

हमें सभी स्वतंत्रता सेनानियों को एक समान रूप से देखना चाहिए। देश का आजादी में हर देश वासी का अपने-अपने स्तर पर योगदान रहा हैं। हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, जहां सभी धर्मों को एक समान मान्यता प्राप्त हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए हमारे देश ने हमें एपीजे अब्दुल कलाम, स्वामी विवेकानंद जैसे कई महान पुरुष दिए है। जिन्होंने पूरे विश्व में भारत वर्ष का नाम ऊंचा किया है।  

                                                          संपादन-  दीपक कोहली



‘सोच’


सोच हर इंसान की अलग-अलग होती है। जो किसी के बस में नहीं होती है। बस हर इंसान अपनी सोच के अनुसार चलता तो जरूर है। लेकिन हर पल उसकी सोच बलती रहती है। सोच ही इंसान को एक बेहतर इंसान की राह पर ले जाती है। सोच इंसान का आधा परिचय दे देती है। सोच का कर्मों से कोई लेना देना नहीं है। यह जरूरी नहीं की एक चोर के मस्तिष्क में हर पल चोरी के ख्याल ही आते हो। 



एक बुद्धहीन इंसान के मस्तिष्क में भी कभी-कभी अच्छे विचार आ जाते है। क्योंकि हमारा मस्तिष्क ब्रह्मांड की तरह है। जिसे कोई पकड़ नहीं सकता, जिसे कोई रोक नहीं सकता है। इसलिए हमारा मस्तिष्क सदैव आजाद होता है। सोच ही हमारी एक पहचान बनाती है। जिस इंसान की जैसी सोच वहीं इंसान वैसे ही अपनी परिचय देगा। क्योंकि वह अपनी सोच पर सीमित होगा।

वैसे हमारी सोच सीमित तो नहीं है। लेकिन हमारी सोचने की शक्ति सीमित है। क्योंकि इंसानी जीवन बहुत ही कठिनमयी है। इंसान होना बड़ा नहीं है। इंसानी जीवन जीना कठिनमयी है। जिसे जीने के लिए इंसान दिन-रात मेहनत करता है।  

                             ।। दीपक कोहली ।। 

  

हमारी औरतें...





यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि हमारी औरतें दासी से कम नहीं हैं। जी मैं यह कथन इसलिए बोल रहा हूं, क्योंकि अभी तक मैंने हमारी औरतों तो दासी की तरह काम करते देखा हैं। मैं देश की राजधानी दिल्ली और मेट्रो सिटी की बात नहीं कर रहा हूं। मैं बात कर रहा हूं। गांव देहात क्षेत्रों की जहां आज भी औरत अपने मन पसंद कपड़े नहीं पहन सकती है। वैसे भी भारतीय समाज और संस्कृति में औरत को पत्नी कम दासी या नौकर ज्यादा समझा जाता है। यह मैं इस लिए कह रहा हूं। क्योंकि आज भी पढ़े-लिखे लड़के अपनी पत्नी के साथ दासियों जैसा व्यवहार करते नजर आते हैं। जो हमारी औरतों का सरासर अपमान हैं। आज पति के दुर्व्यवहार से लगभग हर दूसरी औरत पीड़ित हैं। जो यह बताता है कि हमारे समाज में आज भी नारी की स्थिति सही नहीं है। आखिर कब तक हमारा समाज नारी या औरत को दबाता रहेंगा।

आज भी हमारे देश में आधे से भी ज्यादा लड़कियों की शादी नाबालिग उम्र में ही कर दी जाती है। जो एक प्रकार से नारी पर जुर्म थोपना है। आज तक हमारी सरकारें भी नारी के लिए कुछ नहीं कर पाई है। नारी की स्थिति आज भी हमारे देश में बहुत ही खराब मानी गई है। यह मैं नहीं बल्कि विश्व की सर्वे एजेंसियां कह रही हैं। जो हमारे भारतीय समाज के लिए एक कलंक है। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा समाज खतरे की ओर अग्रसर हो जाएगा। हमें इस विषय पर गंभीरता से सोचना होगा कि आखिर हमारे समाज में औरतों पर इतने जुर्म क्यों किए जाते हैं ? क्या हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है। या फिर हम इसके मानसिक रोगी बन गए है। जिस प्रकार से हमारा देश विकास की ओर अग्रसर हो रहा है, लेकिन उस प्रकार से हमारा समाज बिल्कुल भी नहीं बदल रहा है। हां इतना जरूर है कि हमारे समाज ने अपनी संस्कृति को धीरे-धीरे त्यागना जरूर शुरू कर दिया है। औरतों के प्रति नजरिया आज भी वहीं है।

हमारा समाज हर औरत को कमजोर और अबला दृष्टि से देखता है, जो बिल्कुल भी सही नहीं है। हमारी औरतों पर जिस तरह से दिन पे दिन रेप, बलात्कार, शोषण जैसी घटनाएं हो रही हैं। वह हमारी महिला समाज के लिए बेहद खतरनाक होता जा रहा है। इस विषय पर हमारी औरतों को भी जागरूक होने की जरूरत है। उन्हें अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को सहने के बजाय उसके खिलाफ आवाज उठाकर लड़ना होगा। तभी नारी पर अत्याचार कम होंगे। आज हम 16वीं सदी में नहीं बल्कि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। आज हर इंसान स्वतंत्र है। उसे अपने तरीके से जीने का पूर्ण आधिकार हैं। वह अपनी मर्जी से जी सकता है। अगर यहीं अधिकार हमारी औरतें और नारी शक्ति जान ले व समझ लें तो उनके ऊपर हो रहे अत्याचार कम ही नहीं बल्कि खत्म हो जाएगें। हमें सिर्फ समझने और जागरूक होने की जरूरत हैं। हमें पुराने विचारों से निकल कर नये विचारों की ओर अग्रसर होने की जरूरत है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज हम आधुनिक दुनिया में जी रहे है।

यहां हर इंसान आजाद है। हमें अपनी मानसिक सोच बदलने की जरूरत है। सदियों से हम एक ही विचारधारा में जीते आ रहे है। जो पुरुष प्रधान विचारधारा है। अब समय आ गया है। इस विचारधारा को दूर फेंक कर एक नई विचारधारा में जीवन को जीने का...। आइए आज और अभी से ही शुरू करते है। उन पुराने विचारधाराओं को दूर फेंकने का काम और नयी विचारधारा को अपनाने की नई शुरुआत। 

                      ।।संपादन- दीपक कोहली।। 


<< व्याकरण >>


हिंदी व्याकरण


·      संज्ञाः- किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, स्थिति, गुण, भाव के नाम का बोध कराने वाले शब्दों को संज्ञा कहते है।

संज्ञा पांच प्रकार के होते है।

1)             व्यक्तिवाचक
2)             जातिवाचक
3)             द्रव्यवाचक
4)             समूहवाचक
5)             भाववाचक

·      व्यक्तिवाचक संज्ञाः- वे शब्द जो किसी विशेष व्यक्ति, विशेष वस्तु, विशेष स्थान या फिर किसी विशेष प्राणी के नाम का बोध कराते है। उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है।


·      जातिवाचक संज्ञाः- जिस संज्ञा से किसी वर्ग, समुदाय, जाति की जानकारी मिले वे शब्द जातिवाचक  संज्ञा की श्रेणी में आते है।

·      द्रव्यवाचक संज्ञाः- वे शब्द जो द्रव्य पदार्थों का बोध कराते है। वे शब्द द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है।


·    समूहवाचक संज्ञाः- जिससे समूह का बोध हो। वे शब्द समूहवाचक कहलाते है।


·      भाववाचक संज्ञाः- जिन संज्ञा शब्दों से किसी वस्तु & व्यक्ति के गुण, धर्म, शील, स्वभाव, अवस्था इत्यादि का बोध होता है। उसे भाववाचक संज्ञा कहते है।   



सूरत का हादसा


महक रहा था जहा बच्चो का बाग,
यकायक उजाड़ गई वो भयावह आग,

जीने की आश में चौथी मंजिल से छलांग लगाई
फिर भी आग ने आनेकी हमे वजह नहीं बताई

तक्ष शीला बिल्डिंग हे बहुत बड़ी,
जल गई थी आग में उसकी पूरी सीडी

कूद गए वहा से राम और रूचित
कदम उठाए गए हैं उन्होने उचित

लोगो ने जब वीडियो और फोटो खिचाई
केतन ने हिम्मत से दो बच्चो की जान बचाई

कहते हैं कि सूरत का भोजन,
और काशी का मरण अच्छा है, लेकिन,

तक्ष शीला मे न भोजन मिला,
न पढ़ाई के लिए ट्यूशन मिला,

आग ने रचाई भयंकर लीला,
निर्दोष बच्चो को सजा जो मिला

अफसर बनने की रखी थी ख्वाहिश
लेकिन मर गए उसमे स्टूडंट पूरे बाइस

जब जब ऎसा हादसा होता है
बेकसूर इंसान ही खूब रोता है

जांच कमिशन और इंक्वायरी होती है
लेकिन क्या पता किस को क्या सजा होती है?

कवि गुलाब कहे कानून सख्त बनाओ
ऎसे गुन्हेगारो को फांसी पर लटकाओ

डॉ गुलाब चंद पटेल