प्रस्तावना- उत्तराखंड एक हिमालयन पर्वतीय राज्य है। जो अपनी सुंदरता और लोकप्रियता के लिए पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध है। उत्तराखंड की बोली-भाषा इस राज्य को एक अलग पहचान दिलाती है। यहां की सुंदरता इसकी सौन्दर्य को दर्शाती है। देवों का लोक, देवों की भूमि अगर कहीं है, तो वह अपना उत्तराखंड है।
सारांश- उत्तराखंड राज्य की स्थापना 9 नवंबर 2000 को हुई। इससे पहले हमारा राज्य उत्तरप्रदेश का हिस्सा था। आपको बता दें, अलग राज्य के लिए हमारे कई उत्तराखंड वासियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। कई सालों की कड़ी मेहनत और कई आंदोलनों के बाद उत्तराखंड को 9 नवंबर 2000 में एक अलग राज्य का दर्जा मिला। अलग राज्य की मांग मुख्य तौर पर पर्वतीय क्षेत्रों का विकास, मूलभूत सेवाएं पहुंचाना था। उत्तराखंड राज्य बनने से क्षेत्र का विकास तो हुआ है, परंतु आज भी कई इलाके ऐसे है, जहां मूलभूत सेवाएं अभी तक नहीं पहुंच पा रही हैं। प्रदेश कई बार आपदाओं का शिकार हो चुका है। प्रदेश में लगातार होता पलायन यहां की मुख्य चुनौती बनी हुई है। ग्रामीण इलाके सुनसान पड़े है। जंगलों में लगातार कटान हो रहा है। खेती बिल्कुल खत्म हो गई है। जो सपना हमारे आंदोलनकारियों ने देखे थे, वो धरे के धरे रह गए हैं। प्रदेश के इन हालतों के लिए प्रदेश की जनता के साथ-साथ यहां के राजनेता सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। जब उत्तराखंड राज्य की मांग उठ रही थी, तब हमने कई सारे सपने देखे थे।
आज प्रदेश को बने 18 साल हो चले है, इसके बावजूद भी हम उन सपनों को जमीन पर नहीं उतार पाए हैं, जो हमारे आंदोलनकारियों ने देखे थे। हमारा राज्य आज एक नई दिशा की ओर तो बढ़ रहा है, परंतु अपनी पहचान धीरे-धीरे खो रहा है। ऐसे में हमारी राज्य सरकार को राज्य की पहचान को ध्यान में रखते हुए, योजनाओं को धरातल पर लागू करना चाहिए। जिससे हमारी संस्कृति, सभ्यता, पुराणतत्वों बने रहें।
अगर उत्तराखंड अपनी संस्कृति-सभ्यता को यूं ही खोता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखंड अपनी पहचान जल्द खो देगा। राज्य की जनता से लेकर यहां के राजनेताओं को इन विषयों को गंभीरता से लेना चाहिए। तभी प्रदेश की संस्कृति और सभ्यता बरकरार रह पाएंगी।
हमें अपने सपनों का प्रदेश बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, तभी यह संभव हैं। हमें प्रदेश के स्वास्थ सेवा, शिक्षा व्यवस्था, मूलभूत विकास और सेवाओं को लेकर काम करना होगा। आज भी राज्य के कई क्षेत्रों में स्वास्थ सेवा उपलब्ध नहीं हैं। शिक्षा व्यवस्था तो भगवान भरोसे है। प्रदेश का विकास राज्य को अपनी पहचान से दूर ले जा रहा है। जिन चीजों से हमारी पहचान है, उन्हीं को हम भूल रहे है। जो राज्य भविष्य के लिए चिंता का विषय है। हमें अपने जंगलों, प्राकृतिक स्त्रोतों, सभ्यताओं को बचाने हेतु कार्य करने चाहिए, जिससे हमारे राज्य की पहचान बनी रहें। राज्य से जिस गति से पलायन हो रहा है, वह राज्य के लिए सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही हैं।
पलायन के लिए हमारी प्रदेश सरकार ने पलायन आयोग का गठन तो कर लिया, लेकिन जमीन पर कार्य करना भूल गई। प्रदेश के लिए यह विडंबना है, कि लगातार प्रदेश से पलायन हो रहा है। ग्रामीण इलाकों का हाल, तो बताने योग्य है ही नहीं। कई गांव तो खाली हो चुके है, कई गांव में बस एक-दो परिवार ही बचें हैं। जरा सोचिए कैसे इन गांवों का हाल पहले कैसे हुआ करता होगा, आज यहीं गांव इंसानों के लिए रो रहे हैं, जहां कभी इंसानों का जमवाड़ा और जमीन के लिए लड़ाइयां हुआ करती थी। आज वहीं जमीन सुनी पड़ी हुई है।
हमारा सपना- हम सभी प्रदेशवासियों को राज्य की पहचान बचाने के लिए एक सपना एक साथ देखना होगा, तभी हमारे सपनों का राज्य हमें मिलेंगा। सपना- हर गांव - कस्बों में मूलभूत सेवाएं हो, सभी को सही स्वास्थ सेवाएं मिले, सभी को एक समान शिक्षा प्रदान हो। जातिवाद को खत्म कर, सभी हितों के लिए काम करने की जरूरत है। प्रकृति की सुंदरता को बचाना होगा, प्राकृतिक चीजों को सही से इस्तेमाल करना होगा। चाहे वह पानी हो या फिर शुद्ध खेती। हमें संस्कृति के बारे में भी सोचना है, तभी हमारी बोली-भाषा और परंपरागत सांस्कृतिक सभ्यता आगे हमारे नई पीढ़ी के साथ चलेगीं। इन सभी के लिए हमें एक साथ आगे आने की जरूरत है। प्रदेश के हालातों, समस्याओं को समझना होगा, हमें एक नये सपना हर दिल में बसाना और जगाना होगा, तभी हमें हमारे पुर्वजों की जन्मभूमि मिल पाएंगी, जैसे हम लगातार खोज रहे है। आइए एक कदम प्रदेश के नये सपने की ओर बढ़ते है।
काश..! ऐसा होता हमारा उत्तराखंड- काश..! हमारा उत्तराखंड भी अपनी पहचान को विश्व की धरा तक पहुंचा पाता। यहां भी करोड़ों की तादाद में पर्यटक आते और यहां की खूबसूरती को एक नया रूप देते। युवाओं को अच्छी शिक्षा और अच्छे संसाधन मिले पाते।
जिससे हमारे प्रदेश के युवा भी खेल, साहित्य जैसे क्षेत्रों में अपने प्रदेश का नाम रौशन कर पाते। गांवों के हर घर में बिजली होती, पानी की सही प्रयोग हो पाता। जिससे प्रदेश की खेती बढ़ती, रोजगार को अवसर खुलते। काश..! ऐसा होता हमारा उत्तराखंड। हर स्कूलों में शिक्षिक होते, हर विद्यार्थी के पास कम्प्यूटर होता, हर किसान को सही दाम मिलता, हर नागरिक के पास एक समान अधिकार होता, हर गांव में सही विकास होता, हर व्यक्ति अपनी भाषा-बोली में बोलता, हर कोई अपनी सांस्कृतिक पहनावे में होता, काश..! मेरा उत्तराखंड ऐसा होता।
उपसंहार- उत्तराखंड राज्य देश के पर्वतीय राज्यों में सबसे सुंदर सबसे प्यारा राज्य है। जो अपनी खूबसूरती के लिए देश के कौने-कौने में जाना जाता है। राज्य को बने 18 साल से ज्यादा का समय हो गया है। इसके बावजूद भी हम अपनी मूलभूत सेवाओं को सही और मजबूत नहीं बना पाएं है। जिसके लिए हम खुद जिम्मेदार है। क्यों प्रदेश के सरकारी नौकर शाही मेट्रो शहरों की ओर भाग रहे है। प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में सिर्फ गरीब तबका बचा हुआ है। जो लगातार संघर्ष भरा जीवन जीने के लिए मजबूर हो रहा है। उम्मीद करता हूं, प्रदेश के इन हालातों के लिए प्रदेश सरकार और हमारी प्रदेश की जनता जल्दी ही कुंभकर्णीय नींद से जागेंगी। हमारा उत्तराखंड भी जल्द, हमारे उत्तराखंड वासियों के सपनों का राज्य बनेगा।
लेखक- दीपक कोहली