उत्सवों को में अब नकार कर
अलगाववादी हो गया हू
मन मे कोई दीप नही जलता
कोई रंग असर नही करता
मैंने बहुत प्रयास किया
बहुत गहरे तक मे
अपने अंदर तक लौटा
मगर कोई उमंग
कोई उत्साह मुझे
स्वयं में नहीं दिखा।
अब मेरे पैर किसी संगीत पे
थिरकते नही है
सारी खुशियो को छोड़
में अब खाना बदोश हो गया हूं
अब सारा उत्साह , उमंग
मेरे मन मे बंजर हो गये है
इन आँखों से सारे मंज़र
अब भूले नही जाते
सारी त्रासदियों को देख
में अब पत्थर हो गया हूं।
लेखकः कमल राठौर साहिल
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