साहित्य चक्र

17 February 2022

कविताः चल ना, सब भूलकर, मिलकर रहें





छोटे से इस जीवन में दोस्त,
जगह मत देना, दिल में नफरत, को,
अल्लाह और ईश्वर की तरह,
बिना सोचे, बस प्यार करते रहो, सबको;

मुस्लिम हो तो एकदिन, कब्र में जाओगे,
हिंदू होकर तुम, जलकर राख हो जाओगे,
फिर इस रंजिश को पालकर दिल में,
क्या लगता है, कभी कुछ पाओगे ?

मुस्लिमों,
दूसरे मुल्क के जिंदाबाद से,
तुम्हे प्यार नहीं, बस हथियार मिलेगा,
अपने देश से मोहब्बत करके देखो,
तुम्हे दूसरे कौम का भी प्यार मिलेगा;

हिंदुओं,
छोटी बातों को मुद्दा बनाकर,
नफरत के गीत कब तक गाओगे,
अरे महादेव पूछेंगे की क्या अच्छा किए,
तो किस मुंह से, उनके सामने जाओगे;

इसलिए,
मिलकर पुरानी बातें,
चल ना भूल जाते हैं,
तुम होली का रंग खरीदना, 
हम सेवइयां लेकर आते हैं।


                                    लेखकः अमित रंजन

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