साहित्य चक्र

15 February 2022

शीर्षक: आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी एवं साहित्यजगत में योगदान



साहित्य को परयायी शब्द वाड़मय है। जब शब्द, अर्थ, विचार,भाव यह परंपरा के अनुकूल सहभाव रखते हैं,तब उसे साहित्य कहते हैं। साहित्यकारों के प्रयत्न और अनुभव व्दारा सृजन में साहित्यकारों का बड़ा योगदान रहा है। और हर साहित्यकार की अपनी विशेषता होती है ऐसे ही साहित्य जगत के साहित्यकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी है।जिनका जन्म ( १८६४-१९३८) ग्राम दौलतपुर, जिला रायबरेली उत्तर प्रदेश में हुआ था। 'सरस्वती' पत्रिका के संपादक के रूप में व्दिवेदी जी ने हिंदी साहित्य जगत को अनेक रूपों में प्रभावित किया है। ये प्रारंभ में 'भुजंग भूषण भट्टाचार्य 'के छद्म (गुप्त) नाम से 'सरस्वती 'पत्रिका में अपनी रचनाएं छापते थे। इन्होंने साहित्य को 'ज्ञान की राशि का संचित कोश'कहकर पुकारा है। 





हिंदी समालोचना को स्थापित करने का श्रेय इन्ही को जाता है। इन्होंने ने 'सरस्वती'का संपादक कार्य १९०३ई. में संभाला। तथा वे१९२०ई.तक लगातार जुड़े रहे। इस इतने से समय में इन्होंने ऐसे अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। एक ओर तो इन्होंने हिंदी गद्य संस्कार,परिष्कार, परिमार्जित किया तो दुसरी ओर लेखकों को उनकी कमियों से परिचित कराया। तथा भाषा की व्याकरणिक भुलो को सुधार कर परिष्कार किया।व्दिवेदी का सबसे बड़ा योगदान है खड़ी बोली हिन्दी को काव्य भाषा के पद पर लाने का। उन्होंने ब्रजभाषा में लिखी जाने वाली कविता को मान्य नहीं किया। और गद्य एवं पद्य दोनों की भाषा एक होनी चाहिए ऐसा उनका मानना था। खड़ी बोली पर ज्यादा बल दिया है। खड़ी बोली के पद्य पर व्दिवेदी का पुरा पुरा असर पड़ा है।व्दिवेदी जी अन्य कवियों व्दारा भेजी गई रचनाओं की भाषा आदि सुधार कर सरस्वती में छापते थे। और इस तरह से अनेक कवियों की भाषा साफ होने लगी और उन्ही के लक्ष्य क़दम पर अन्य कवि भी चलने लगे। पर कुछ थे जो स्वच्छंद काव्य लेखन कर रहे थे। पर बाद में वे भी इन्हीं की तरह काव्य लेखन कार्य करने लगे।


                आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की पद्य रचनाएं हैं- देवी स्तुति शतक (१८९२ई.), कान्यकुब्जावलीवतम(१८९८ई.), समाचार पत्र संपादन स्तव:(१८९८ई.),नागरी (१९००ई.), कान्यकुब्ज -अबला -विलाप(१९०७ई.), काव्य मंजूषा (१९०३ई.), सुमन (१९२३ई.)व्दिवेदी काव्य-माला (१९४०ई.) इत्यादि।


अनुदित रचनाएं-कुमार संभव सार ( संस्कृत के कालिदास व्दारा विरचित 'कुमार संभव'महाकाव्य का हिंदी अनुवाद १९०२ई.मे किया।),ऋतु तरगिणी, गंगा लहरी। भुजंग भूषण भट्टाचार्य नाम से प्रकाशित लेख- कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता (१९०८ई.की सरस्वती में) है।इनके निबंध है-कवि और कविता,कवि प्रतिभा,कवि कर्तव्य, साहित्य की महत्ता,लोभ, मेघदूत,क्या हिंदी नाम की कोई भाषा नहीं, आर्य समाज का लोप (१९१४ई) ।इसी प्रकार और भी अन्य रचनाएं हैं।


            निष्कर्ष रूप से हम देख सकते हैं कि आर्चाय महावीर प्रसाद द्विवेदी जी  एक कवि, आलोचना, निबंधकार, अनुवादक, संपादक के रूप में हमारे समाने आये है। और आधुनिक के सबसे प्रमुख एवं महान साहित्यकार थे। साहित्य उत्थान के लिए इन्होंने जो कुछ भी किया है वह बड़े ही गर्व की बात है साहित्य जगत में इनका योगदान बहुमूल्य एवं सराहनीय था। नैतिकता मर्यादा, संस्कृति समाज सुधार आदि पर विशेष बल दिया है इन्होंने। इस प्रकार उन्होंने हिंदी को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया है। और अन्य कवि का भी ध्यान इसकी ओर मोड़ा है।



                            लेखिका- कुमारी गुड़िया गौतम


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