गायों से नहीं चाहे हमने बछड़े
और स्त्रियों से लड़कियां,
दोनों के प्रति हमारे समाज का
अघोषित सा दुराव रहा है,
क्योंकि धन-संपत्ति घर में
आने के अवसर ज्यादा हैं
बछिया और लड़कों से,
इसलिए बछड़ों और लड़कियों से ऊंचा
उनका यहां स्थान रहा है।
कहने को भगवान की देन
कहते हैं बच्चों को सब
लेकिन मन्नतों में लड़के ही मांगने पर
लोगों का ज्यादा ध्यान रहा है।
आती हैं ज्यादातर लड़कियां बिन मांगे ही
इसलिए तो दांव पर हमेशा
उनका सम्मान रहा है।
समाज के नियम रहे हैं ज्यादातर
लड़कियों के लिए दुखदाई ही,
उनके अपने घर में ही उनका दर्जा
बराए एक मेहमान रहा है,
पाला-पोसा जाता है उन्हें पराए धन
के तौर पर आज भी
उनके कन्यादान करके मां-बाप का
पुण्य कमाने का अरमान रहा है।
जरूरी दोनों हैं दुनिया में
वंश-वृद्धि के लिए यह जानते हैं सब
लेकिन फिर भी लड़कों से ही
कुल बढ़ाने पर सबका अधिमान रहा है,
समानता का राग अलापते जरूर हैं हम
मगर एक समाज के तौर पर
अक्सर दोगला हमारा व्यवहार रहा है।
जितेन्द्र 'कबीर'
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