माँ ये कितनी सुंदर है न फिर तुम
इसे क्यूँ दान कर रही हो भला
विज्ञापन नेत्रदान का देख मैंने
कौतूहलवश माँ से था पूछा
जीवित रहती है कोशिकाएंँ
कुछ क्षण भर मृत्यु पश्चात भी
भर सकती हैं रंग खुशी के
नेत्रहीन के नीरस जीवन में भी
नेत्रदान है महादान जगत में
प्रण इसका गर जो मानव करे
अंधेरे स्पर्श कर अपूर्ण जीवन में
सुंदर सपनों का इन्द्रधनुष बिखरे
शरीरभंग मृत्यु पश्चात....भ्रम है
........ बस एक पूर्ण अज्ञान है
दधिची ने तो जीवनरत हीं
त्यागा अपना संपूर्ण शरीर है
तब वो त्याग न्यायसंगत
वेदसंगत था जो फिर भला
आँखों का दान मृत्युपश्चात
देहभन्ग है कैसे बताओ ज़रा!
आँखें हैं उपहार स्वरूप मिले हमें
चलो न खुशियां बांटते हैं
मरने के बाद भी जीवित रहे ये
नेत्रदान दे गरिमा मानव की रखते हैं।
लेखिकाः सारिका ठाकुर "जागृति"
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