साहित्य चक्र

21 February 2022

कविताः बसंत




फूलों में खिलखिलाहट हुई 
पत्तों ने ली अंगड़ाई 
रंगोली प्रकृति ने बिछाई 
वस्त्रों से धरा ढँक आयी 
बसंत की रुत आयी 

वृक्षों ने परिधान बदले 
इंद्रधनुष सी छठा बिखराई 
पतझर से मुक्ति दिलाई 
प्रियतम की याद दिलाई
बसंत की रुत आयी 

मन की डाली हिलने लगी 
झरने लगे उदासी के शूल 
खिलने लगे आशाओं के फूल 
नैनों ने विरह टीस बिरसाई  
बसंत की रुत आयी 

मुस्कुराई हूँ दर्पण देख 
नैनों में भीनी चमक है आई 
मन मृग बन कर डोल रहा है 
तन मन में चाय तरुणाई

क्या तुम आये हो?
मन ने प्रश्नों की झड़ी लगायी 
फिर तुम्हारी छवि दिखाई 
मधुर आवाज कानों ने सुनाई 

बसंत  की रुत आयी 


                                      लेखिकाः वंदना जैन


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