फूलों में खिलखिलाहट हुई
पत्तों ने ली अंगड़ाई
रंगोली प्रकृति ने बिछाई
वस्त्रों से धरा ढँक आयी
बसंत की रुत आयी
वृक्षों ने परिधान बदले
इंद्रधनुष सी छठा बिखराई
पतझर से मुक्ति दिलाई
प्रियतम की याद दिलाई
बसंत की रुत आयी
मन की डाली हिलने लगी
झरने लगे उदासी के शूल
खिलने लगे आशाओं के फूल
नैनों ने विरह टीस बिरसाई
बसंत की रुत आयी
मुस्कुराई हूँ दर्पण देख
नैनों में भीनी चमक है आई
मन मृग बन कर डोल रहा है
तन मन में चाय तरुणाई
क्या तुम आये हो?
मन ने प्रश्नों की झड़ी लगायी
फिर तुम्हारी छवि दिखाई
मधुर आवाज कानों ने सुनाई
बसंत की रुत आयी
लेखिकाः वंदना जैन
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