साहित्य चक्र

20 February 2022

कविताः बेटी





 सावन में डाली का झूला है बेटी।
उपवन में खिलता गुलाब है बेटी।
उगते हुए सूर्य की लाली है बेटी।

सन्ध्या में दिया बाती है बेटी।
आसमाँ में टिमटिमाता तारा है बेटी।
रसों में श्रृंगार सी होती हैं बेटी।
अलंकारों में उपमा सी होती हैं बेटी।

माता पिता की आन है बेटी।
भाई की राखी का मान है बेटी।
उदासी में उल्लास का संचार है बेटी।

गम की हर दवा का उपचार है बेटी।
बेटियों से ही घर की पहचान होती है। 
एक,दो नही ये तीन कुलों की आन होती है।

धन्य है वह माता पिता 
जिनके घर में बेटियो का हुआ पदार्पण।
बेटियों जितना भला कहाँ मिलता है समर्पण।


                          लेखिकाः अर्चना लखोटिया


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