साहित्य चक्र

15 February 2022

कोशिश - एक गज़ल





बनी  दुश्मन  है  दुनिया  बेवजह  अपनी,
हुई   गलती   कोई  शायद  वज़ह  अपनी।

मुसीबत   की   घड़ी   लायी   तबाही  है,
किसी  ने  छोड़  दी  जैसे  सतह  अपनी।

बचाना  ज़िंदगी  मुश्किल  हुआ  कितना,
नहीं  नज़दीक दिखती है  फतह अपनी।

हमें   बरबाद   कर   देगा   कोरोना  क्या,
बने  कैसे  मुकम्मल   इक  जगह  अपनी।

तजुर्बा  तो  नहीं,  कोशिश   मगर  ज़ारी,
न  दुश्मन से हुई अब-तक सुलह अपनी।

बनी  दुश्मन  है  दुनिया  बेवजह  अपनी,
हुई   गलती   कोई  शायद  वज़ह  अपनी।



                            लेखकः नागेन्द्र नाथ गुप्ता


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