साहित्य चक्र

06 February 2022

कविताः ऋतुराज वसंत





पेड़ों की पत्तियां
गिर रही 
मद्धम हवा के
झोकों से 
चिड़िया विस्मित 
चहक रही 
ऋतुराज वसंत के
धीमे से आने से 
आम के वृक्ष पर आए
बोर के
फूल की खुशबू
संग हवा के 
संकेत देने लगी 
टेसू से हो रहे
पहाड़ के गाल सुर्ख 
पहाड़ अपनी वेदना
किसे बताए
वो बता नहीं पा रहा 
पेड़ का दर्द 
लोग समझेंगे 
बेवजह राइ का पर्वत
पहाड़ ने पेड़ो की 
पत्तियों को समझाया 
मै हूँ तो तुम हो 
तुम ही तो कर रही
वसंत का अभिवादन 
तुम गिरी नहीं
तुम बिछ गई हो  
और आने वाली नव कोपलें 
जो तुम्हारी वंशज 
कर रही वसंत के 
आने का अभिवादन
कोयल भी मीठी राग अलापे
लग रहा वादन हो 
जैसे शहनाई का 
गुंजायमान हो रही वादियाँ  
गुम हुआ पहाड़ का दर्द 
जो वसंत में
टेसू के फूलों से 
कर रहा अपना श्रृंगार


                                लेखकः संजय वर्मा "दृष्टि"


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