पेड़ों की पत्तियां
गिर रही
मद्धम हवा के
झोकों से
चिड़िया विस्मित
चहक रही
ऋतुराज वसंत के
धीमे से आने से
आम के वृक्ष पर आए
बोर के
फूल की खुशबू
संग हवा के
संकेत देने लगी
टेसू से हो रहे
पहाड़ के गाल सुर्ख
पहाड़ अपनी वेदना
किसे बताए
वो बता नहीं पा रहा
पेड़ का दर्द
लोग समझेंगे
बेवजह राइ का पर्वत
पहाड़ ने पेड़ो की
पत्तियों को समझाया
मै हूँ तो तुम हो
तुम ही तो कर रही
वसंत का अभिवादन
तुम गिरी नहीं
तुम बिछ गई हो
और आने वाली नव कोपलें
जो तुम्हारी वंशज
कर रही वसंत के
आने का अभिवादन
कोयल भी मीठी राग अलापे
लग रहा वादन हो
जैसे शहनाई का
गुंजायमान हो रही वादियाँ
गुम हुआ पहाड़ का दर्द
जो वसंत में
टेसू के फूलों से
कर रहा अपना श्रृंगार
लेखकः संजय वर्मा "दृष्टि"
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