साहित्य चक्र

10 February 2022

कविताः लता कभी मर नहीं सकती




पूरा संसार उसकी आवाज का था दीवाना
संगीत से उसका नाता था बहुत पुराना
आज खामोश हो गई वह सुरीली आवाज
स्वर कोकिला के नाम से जिसको ज़माने ने था जाना 

ए मेरे वतन के लोगो जब गीत गाया था
पूरे देश के लोगों में देशभक्ति का जज्बा जगाया था
नेहरू की आंखे भी भर आईं थी यह गाना सुनकर
बच्चा बच्चा अपनी हैसियत से आगे आया था

आज हर तरफ खामोशी है छाई एक उदासी है
जिनसे निकलती थी मधुर धुन टूट गए आज वो तार
मन नहीं भरता था उनके मधुर गाने सुन कर
ताजगी आती थी सुनो चाहे हज़ार बार

यूँ ही कोई सुर सम्राज्ञी लता नहीं बनता
यूँ ही कोई दुनियां में दिलों पर राज नहीं करता
लता बनने के लिए माता सरस्वती का गले में बास चाहिए
बाज के पंख लगाने से कौवा बाज नहीं बनता

कोई जब लिखेगा संगीत की कहानी
लता का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा
हर एक कि जुबान पर हैं गीत तेरे
तेरे गीतों को कोई कैसे भूल पायेगा

सादगी बहुत थी कोयल सी थी आवाज
बचपन से ही किया था संगीत का आगाज़
लता कभी मर नहीं सकती यहीं कहीं है
हर तरफ से तो आ रही उसी की आवाज

                    कविः रवींद्र कुमार शर्मा


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