साहित्य चक्र

05 February 2022

तुम प्रीति रूप हो माँ




तुम विद्या की देवी हो, तुम वेद की ऋचा हो ।
संगीत रूप हो माँ, तुम प्रीति रूप हो माँ ।।
वीणा बजाने वाली माँ, तम को मिटाने वाली माँ ।
ज्योत फैलाने वाली माँ, विद्या वर देने वाली माँ   ।।

हर रूप जगत में माँ, भास तुम्हारी हैं ।
हर दास -त्रास में माँ, विश्वास तुम्हारी हैं ।।
तुम ध्यान रूप हो माँ, गुरु ज्ञान रूप हो माँ ।
तुम सिद्धि साधना में,उत्थान रूप हो माँ ।।

हंस के सवारी करने वाली माँ, स्वरों की देवी हो ।।
तुम हार में समायी, जीत रूप हो माँ ।।
तुम गीत रूप हो माँ, तुम श्रद्धा  रूप हो माँ ।।
हर शीत, वसन्त ऋतु में, हर धाम रूप हो माँ ।।

हर वेदना व्यथा में, आराधना में तुम हो ।
हर भोर -साँझ में, तुम निशा रूप हो माँ ।।
शिक्षा की ज्योत दिखाने वाली, अशिक्षा मिटाने वाली ।
सम्मान रूप हो माँ, हर मान रूप हो माँ ।।



                             लेखिका- मनीषा कुमारी 


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