साहित्य चक्र

05 February 2022

कविताः बसंत नहीं आया




इस बार बसंत नहीं आया।
धूमिल -धूमिल धरा पर छाया।

बादल बरसे निसदिन - निसदिन.
भरे हृदय की व्यथा कोई समझ ना पाया।

इस बार बसंत नहीं आया।
मौन प्रकृति व्यथा संग मरण सन थी।

कैसे गुंजन करते भंवरे बागों में,
जब कोई पुष्प ही खिल ना पाया।

इस बार बसंत नहीं आया।
जीवन की उमंगे उम्मीदें पिघली पल -पल।

जीवन को एक सजा -सा बिताया।
उम्मीदों -आशाओं से खिलते हैं उपवन।

ना चांद चमका ना कोई तारा आया।
धरती सूखा ना पाई अपनी सीलन को ।
इस बार पेड़ों का पत्ता ना कोई मुस्कुराया।
इस बार बसंत नहीं आया।

लेखिका- प्रीति शर्मा "असीम"


No comments:

Post a Comment