ठहर सा गया है कुछ भीतर
लावा पिघल रहा हो जैसे
जीवन का मृत्यु से
पलक झपकते ही चोला बदल लेना
अखरता है
अखरता है देखते देखते अपनों का
दूर बहुत दूर चले जाना
न लौटना
इन कच्ची सड़कों पर
बूंद भर ओस की तरह
बिखर जाना पूरी दुनिया में
नहीं जाना कभी यादों से दूर
एक ठहरी हुई सी सांस बन कर
अच्छा लगता है अपनों का रहना भीतर
जैसे रहना सितारों का जमीं पर।
लेखिकाः रीदारा
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