साहित्य चक्र

15 February 2022

कविताः अपने




ठहर सा गया है कुछ भीतर
लावा पिघल रहा हो जैसे

जीवन का मृत्यु से
पलक झपकते ही चोला बदल लेना

अखरता है
अखरता है देखते देखते अपनों का
दूर बहुत दूर चले जाना

न लौटना
इन कच्ची सड़कों पर

बूंद भर ओस की तरह
बिखर जाना पूरी दुनिया में

नहीं जाना कभी यादों से दूर
एक ठहरी हुई सी सांस बन कर

अच्छा लगता है अपनों का रहना भीतर
जैसे रहना सितारों का जमीं पर।


लेखिकाः रीदारा


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